मंगलवार, 13 मार्च 2012

330. तुम क्या जानो (तुकांत)

तुम क्या जानो

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हिज्र की रातें तुम क्या जानो
वस्ल की बातें तुम क्या जानो।  

थी लिखी कहानी जीत की हमने
क्यों मिल गई मातें तुम क्या जानो। 

था हाथ जो थामा क्या था मन में
जो पाई घातें तुम क्या जानो। 

न कोई रिश्ता यही है रिश्ता
ये रूह के नाते तुम क्या जानो। 

तय किए सब फ़ासले वक़्त के
क्यों हारी हसरतें तुम क्या जानो। 

'शब' की आज़माइश जाने कब तक
उसकी मन्नतें तुम क्या जानो। 

- जेन्नी शबनम (11. 3. 2012)
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14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर..!
    kalamdaan.blogspot.in

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  2. वाह!!!

    थी लिखी कहानी जीत की हमने
    क्यों मिल गई मातें तुम क्या जानो !

    बहुत खूबसूरत ...

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  3. था हाथ जो थामा क्या था मन में
    जो पायी घातें तुम क्या जानो !

    मन की बातें मन ही जाने.....
    तू जाने न......

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  4. 'शब' की आजमाइश जाने कब तक
    उसकी मन्नतें तुम क्या जानो !
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...

    RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

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  5. रूह् से रूह के नातों का कोई नाम नहीं होता ....
    सुन्दर गज़ल

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  6. छोटी बहर की सुन्दर ग़ज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया!

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  7. तय किए सब फ़ासले वक़्त के
    क्यों हारी हसरतें तुम क्या जानो !

    bahut khub ...

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  8. जीवान के सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभव एवं दर्शन को बहुत खूबसूरती ये पेश किया है । ये पंक्तिया तो लाज़वाब हैं जेन्नी शबनम जी-
    न कोई रिश्ता यही है रिश्ता
    ये रूह के नाते तुम क्या जानो !

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

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  10. कल 15/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  11. न कोई रिश्ता यही है रिश्ता
    ये रूह के नाते तुम क्या जानो !...सच कहा आपने ...सुन्दर !

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  12. तय किए सब फ़ासले वक़्त के
    क्यों हारी हसरतें तुम क्या जानो ...

    बहुत खूब ... उम्र के लंबे दौर की इन हार जीतों को वक़्त ही समझ सकता है ...

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