जी चाहता है
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1.
1.
जी चाहता है
तुम्हारे साथ बीताई सभी यादों को
धधकते चूल्हे में झोंक दूँ
तुम्हारे साथ बीताई सभी यादों को
धधकते चूल्हे में झोंक दूँ
और फिर पानी डाल दूँ
ताकि चिंगारी भी शेष न बचे।
ताकि चिंगारी भी शेष न बचे।
2.
जी चाहता है
तुम्हारे साथ बीते उम्र के हर वक़्त को
एक ताबूत में बंदकर नदी में बहा आऊँ
और वापस उस उम्र में लौट जाऊँ
जहाँ से ज़िन्दगी
नई राह तलाशती सफ़र पर निकलती है।
तुम्हारे साथ बीते उम्र के हर वक़्त को
एक ताबूत में बंदकर नदी में बहा आऊँ
और वापस उस उम्र में लौट जाऊँ
जहाँ से ज़िन्दगी
नई राह तलाशती सफ़र पर निकलती है।
3.
जी चाहता है
तुम्हारे साथ जिए उम्र को
धकेलकर वापस ले जाऊँ
जब शुरुआत थी हमारी ज़िन्दगी की
और तब जो छूटा गया था
अब पूरा कर लूँ।
तुम्हारे साथ जिए उम्र को
धकेलकर वापस ले जाऊँ
जब शुरुआत थी हमारी ज़िन्दगी की
और तब जो छूटा गया था
अब पूरा कर लूँ।
4.
जी चाहता है
तुम्हारा हाथ पकड़
धमक जाऊँ चित्रगुप्त जी के ऑफिस
तुम्हारा हाथ पकड़
धमक जाऊँ चित्रगुप्त जी के ऑफिस
रजिस्टर में से हमारे कर्मों का पन्ना फाड़कर
उससे पंख बना उड़ जाऊँ
उससे पंख बना उड़ जाऊँ
सभी सीमाओं से दूर।
5.
जी चाहता है
टाइम मशीन में बैठकर
टाइम मशीन में बैठकर
उम्र के उस वक़्त में चली जाऊँ
जब कामनाएँ अधूरी रह गई थीं
सब के सब पूरा कर लूँ
और कभी न लौटूँ।
जब कामनाएँ अधूरी रह गई थीं
सब के सब पूरा कर लूँ
और कभी न लौटूँ।
6.
जी चाहता है
स्वयं के साथ
स्वयं के साथ
सदा के लिए लुप्त हो जाऊँ
मेरे कहे सारे शब्द
जो वायुमंडल में विचरते होंगे
सब के सब विलीन हो जाएँ
मेरी उपस्थिति के चिह्न मिट जाएँ
न अतीत, न वर्तमान, न आधार
यूँ जैसे, इस धरा पर कभी आई ही न थी।
मेरे कहे सारे शब्द
जो वायुमंडल में विचरते होंगे
सब के सब विलीन हो जाएँ
मेरी उपस्थिति के चिह्न मिट जाएँ
न अतीत, न वर्तमान, न आधार
यूँ जैसे, इस धरा पर कभी आई ही न थी।
7.
जी चाहता है
पीले पड़ चुके प्रमाण पत्रों और
पीले पड़ चुके प्रमाण पत्रों और
पुस्तक पुस्तिकाओं को
गाढ़े-गाढ़े रंगों में घोलकर
एक कलाकृति बनाऊँ
और सामने वाली दीवार में लटका दूँ
अपने अतीत को यूँ ही रोज़ निहारूँ।
- जेन्नी शबनम (26. 8. 2014)
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12 टिप्पणियां:
अपने अतीत को
यूँ ही रोज़ निहारूँ !
विविध रंगों में रंगी क्षणोकाए बहुत सुंदर ....!!
सुन्दर क्षणिकाएँ।
ओह ! यह तो ज्वालामुखी फट पड़ा .....कितु भावनाओं को बड़े सुन्दर शब्दों में सजाया आपने ! ...सुन्दर प्रस्तुति !
धर्म संसद में हंगामा
क्या कहते हैं ये सपने ?
क्या भावोन्न की सुनामी को कविता में बांधा जा सजता है?ज़रूर ।पर क्षणिकाएँ नहीं। जेन्नी शबनम जरूर लिख सकती हैं ;वह भी इतनी त्वरा से कि पाठक सन्नाटे में आ जाए। पता नहीं भावों का इतना समन्दर कहाँ छिपाए है प्रसिद्धि की ललक से कोसों दूर यह कवयित्री !मैं अभिभूत हूँ।
बाप रे बाप ,इतना आक्रोश -एक क्षण और इतने भारी काम !
सभी यादों को
धधकते चूल्हे में झोंक दूँ
और फिर
पानी डाल दूँ
ताकि चिंगारी भी शेष न बचे !
फिर भी उस आंच की उमस नही जाती1 भावनाओं का प्रवाह दिल को छू गया1
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट खामोश भावनाओं की ऊपज पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है। शुभ रात्रि।
काश हमें मन चाहे मौके मिल पाते ......सुन्दर प्रस्तुति ..!
आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक
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सुंदर
अतीत पर आक्रोश !
प्रभावी क्षणिकाएं।
काश इस चाहत को पंख लग जाएँ और पूरी हों सभी मन्नतें ...
बहुत प्रभावी हैं सभी ...
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