शनिवार, 31 अगस्त 2019

624. कश

कश   

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"मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया   
हर फ़िक्र को धुँए में उड़ाता चला गया" 
रफी साहब ने गा दिया 
देवानंद ने चित्रपट पर निभा दिया 
पर मैं? मैं क्या करूँ? 
कैसे जियूँ?  कैसे मरुँ? 
हर कश में एक-एक फ़िक्र को फेंकती हूँ 
मैं ऐसे ही मेरे ज़ख़्मों को सेंकती हूँ   
मेरी फ़िक्र तो धुँए के छल्ले के साथ    
मेरे पास लौट आती है 
जाने क्यों धुएँ के साथ आसमान में नहीं जाती है 
मेरी ज़िन्दगी का साथी है फ़िक्र 
और फ़िक्र को भगाने का जरिया है 
जलती सिगरेट और धुँए का जो छल्ला है 
जो बादलों-सा होठों से निकलता है 
हवाओं में गुम होकर मेरे पास लौटता है 
साँस लेने का सबब भी है और साँस लेने से रोकता है 
हाँ मालूम है हर छल्ले के साथ   
वक़्त और उम्र का चक्र भी घूम रहा है 
मुझे नशा नहीं हुआ और लम्हा-लम्हा झूम रहा है   
जल्दी ही धुआँ लील लेगा मेरी ज़िन्दगी 
ज़िन्दगी लम्बी न सही छोटी सही 
हर साँस में नई कसौटी सही   
मैं हर फ़िक्र को धुँए में समेट बुलाती रही 
इस तरह ज़िन्दगी का साथ निभाती रही।   

- जेन्नी शबनम (31. 8. 2019) 
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मंगलवार, 27 अगस्त 2019

623. अकेले हम (5 हाइकु) पुस्तक 108,109

अकेले हम

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1.
ज़िन्दगी यही   
चलना होगा तन्हा   
अकेले हम।   

2.
राहें ख़ामोश   
सन्नाटा है पसरा   
अकेले हम।   

3.
हज़ारों बाधा   
थका व हारा मन   
अकेले हम।   

4.   
किरणें फूटीं   
भले अकेले हम   
नहीं संशय।   

5.   
उबर आए,   
गुमराह अँधेरा   
अकेले हम।   

- जेन्नी शबनम (21. 8. 2019)   
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मंगलवार, 20 अगस्त 2019

622. औरत (10 क्षणिका)

औरत 

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1.
औरत 
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एक चुटकी नमक   
एक चुटकी सिन्दूर   
एक चुटकी ज़हर   
मुझे औरत करते रहे   
ज़िन्दगी भर।   


2. 
विद्रोही औरतें 
***   

यूँ मुस्कुराना ख़ुद से विद्रोह-सा लगता है   
पर समय के साथ चुपचाप   
विद्रोही बन जाती हैं औरतें   
अपने उन सवालों से घिरी हुई   
जिनके जवाब वे जानती हैं   
मगर वक़्त पर देती हैं,   
विद्रोही औरतें।   


3. 
समीकरण 
***   

औरत का समीकरण:   
अनुभव का जोड़   
उम्र का घटाव   
भावना का गुणा-भाग   
अंतत: 
जीवन - शून्य।   


4.
ताना-बाना   
***   

जीवन का ताना-बाना   
उलटा-पुलटा चलता रहा 
समय यूँ ही सधता रहा   
कभी कुछ उलझा, कभी कुछ सुलझा 
कभी कुछ टूटकर गिरता रहा   
समय मुझे समझता रहा।   


5. 
मैना   
***   

महल का एक अदना खिलौना   
सोने का एक पिंजरा   
पिंजरे में रहती थी एक मैना   
वो रूठे या हँसे 
परवाह किसे?   
दाना-पानी मिलता जीभर   
फुर्र-फुर्र उड़कर दिखाती करतब   
इतनी ही है उसकी कहानी   
सब कहते- वह है बड़ी तक़दीरवाली।   


6.
बेशऊर   
***   

छोटी-छोटी डिब्बियों में भरकर   
सीलबन्द कर दिए सारे हुनर   
यूँ पहले भी बेशऊर कहलाती थी   
पर अब संतोष है   
सारा हुनर ओझल है सबसे   
अब उसका अपमान नहीं होता।   


7.
दिठौना   
***   

दिठौना तो हर रोज़ लगाया    
भूले से भी कभी न चूकी   
नज़रें तो झुकी ही रहीं    
औरतपना कभी न बिसरी   
फिर ये काली परछाईं कैसी?   
काला जादू हुआ ये कैसे?   
ओह! मर्द और औरत में   
दिठौने ने फ़र्क़ किया।  


8.
शाइस्ता   
***   

कहाँ से ढूँढ़कर लाऊँ वो शाइस्ता   
जो ख़िदमत करे मगर शिकवा नहीं   
बेशऊरी, बेअदबी तुम्हें पसन्द नहीं   
और अदब में रहकर ज़ुल्म सहना   
इस ज़माने की फितरत नहीं।   

(शाइस्ता - सभ्य / सुसंकृत)   


9.
पिछली रोटी   
***   

पहली रोटी भैया की   
अन्तिम रोटी अम्मा की   
यही हमारी रीत है भैया   
यही मिली इक सीख है भैया   
बहुत पुराना वादा है   
कुल की ये मर्यादा है   
ये बेटी का सत है भैया   
ये औरत का पथ है भैया।   


10.
वापसी   
***   

ख़ुदा जाने क्या हो   
चीज़ो को भूलते-भूलते   
कहीं ख़ुद को न भूला बैठूँ   
यूँ किसी ने मुझे याद रखा भी नहीं   
अपनी याद तो ख़ुद ही रखी अबतक   
गर ख़ुद को भुला दिया, फिर वापसी कैसे?   


- जेन्नी शबनम (20. 8. 2019)
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गुरुवार, 1 अगस्त 2019

621. उधार

उधार 

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कुछ रंग जो मेरे हिस्से में नहीं थे 
मैंने उधार लिए मौसम से   
पर न जाने क्यों   
ये बेपरवाह मौसम मुझसे लड़ रहा है 
और माँग रहा है अपना उधार वापस 
जिसे मैंने ख़र्च दिया उन दिनों   
जब मेरे पास जीने को कोई रंग न था   
सफेद-स्याह रंगों का जो एक कोलाज बचा था मेरे पास   
वह भी धुक-धुक साँसें ले रहा था   
ज़िन्दगी से रूठा वह कोलाज   
मुझे भी जीवन से पलायन के रास्ते बता रहा था   
पर मुझे जीना था, अपने लिए जीना था   
बहुत ज्यादा जीना था, हद से ज्यादा जीना था   
हाँ, जानती हूँ उधार लेना और उधार पर जीना ग़ैरवाज़िब है   
जानती हूँ कि मैं कर्ज़दार हूँ और चुकाने में असमर्थ भी   
फिर भी मैं शर्मसार नहीं।    

- जेन्नी शबनम (1. 8. 2019) 
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