शुक्रवार, 21 जून 2024

777. खण्डहर (10 क्षणिका)

खण्डहर 

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1.
खण्डहर होना 
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न समय के, न समाज के ध्यान में होता है
मन का खण्डहर होना
सिर्फ़ मन के संज्ञान में होता है।

2.
खण्डहर में तब्दीली
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खण्डहर में तब्दीली का उम्र से नाता नहीं
सिर्फ़ समय का नाता है
कभी एक पल लगता है, तो कभी कई जन्म।

3.
खण्डहर की पीड़ा  
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खण्डहर की पीड़ा खण्डहर जाने
नए महलों को मालूम नहीं होता 
सबका भविष्य एक ही जैसा है 
समय कभी किसी को नहीं बख़्शता है।

4.
खण्डहर बनना 
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शरीर का खण्डहर बनना ज़माना देखता है
पर मन पुख़्ता है, कोई नहीं देखता
शरीर के साथ मन भी तिरस्कृत होता है
साबुत मन उम्र भर, टूटे जिस्म को ढोता है। 

5.
खण्डहर की आस 
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समय के साथ सब छिन्न-भिन्न हो जाता है 
खण्डहर आस लगाए है
कि उसके गौरवशाली इतिहास का कोई साक्षी
उसके ख़ुशहाल अतीत की गवाही दे
और अदालत का फ़ैसला उसको सुनाई दे। 

6.
खण्डहर का ख़ास पल  
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कई बार मन ख़ास पल में साँस लेता है
उसके खण्डहर तन में वह ख़ास पल
मृत्योपरान्त भी जीता है
ऐसा लगता है मानो शरीर बीता है 
मगर वह पल नहीं बीता है। 

7.
खण्डहर की चाह 
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मन ध्वस्त हो जाता है
तन खण्डहर हो जाता है
परवाह नहीं कि जीवन कितना, मृत्यु कब
पर एक चाह है, जो जाती नहीं
कोई आए, हाल पूछे, ज़रा बैठे
साथ न दे, साथ का भरोसा ही दे।

8.
खण्डहर के मालिक
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महल की ख़ूबसूरती उसका दोष है
उसके हज़ारों टुकड़े किए मिटाने के लिए
खण्डहर में तब्दील होने के गवाहों ने
तमाशा देखा, सुकून पाया
खण्डहर के ख़ज़ानों की बोली लगी है 
अब सारे तमाशबीन खण्डहर के मालिक हैं।

9.
खण्डहर बना देता है 
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समय के चक्र से 
उम्र के उतार पर खण्डहर बनना जायज़ है   
पर उम्र की भरी दुपहरी में 
साबुत बदन को नोच-नोचकर 
नरभक्षी बना काल 
मन को एक झटके में खण्डहर बना देता है  
नियति स्तब्ध है, विक्षुब्ध है। 

10.
खण्डहर भी प्यार है
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किसी भी खण्डहर में एक-न-एक फूल खिल जाता है
मौसम ज़िन्दगी पैदा करता है, पत्थर में साँसे भरता है
इन्सान भूल जाता है, जब खण्डहर जीवित था
उसका प्यार, दुलार, अधिकार था
उसके रिश्तों का आधार था
अगर कभी याद आए तो खण्डहर के अतीत में
अपने दम्भ को याद करने जाता है
इसे मैंने मारा है सोचकर मुस्कुराता है
पर मौसम के लिए खण्डहर भी प्यार है
उसके लिए अब भी एक नक्शा है, एक आकार है।

-जेन्नी शबनम (21.6.24)
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