मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

774. नैनों से नीर बहा (19 माहिया)

नैनों से नीर बहा (19 माहिया)

*** 

1.
नैनों से नीर बहा
किसने कब जाना
कितना है दर्द सहा।

2.
मन है रूखा-रूखा
यों लगता मानो
सागर हो ज्यों सूखा।

3.
दुनिया खेल दिखाती
माया रचकरके
सुख-दुख से बहलाती।

4.
चल-चल के घबराए
धार समय की ये 
किधर बहा ले जाए।

5.
मैं दुख की हूँ बदली
बूँद बनी बरसी 
सुख पाने को मचली। 

6.
जीवन समझाता है
सुख-दुख है खेला
पर मन घबराता है।

7.
कोई अपना होता
हर लेता पीड़ा
पूरा सपना होता।

8.
फूलों का वर माँगा
माला बन जाऊँ
बस इतना भर माँगा।

9.
तुम कुछ ना मान सके
मैं कितनी बिखरी
तुम कुछ ना जान सके।

10.
कब-कब कितना खोई
क्या करना कहके
कब-कब कितना रोई।

11.
जीवन में उलझन है
साँसें थम जाएँ
केवल इतना मन है।

12.
जब वो पल आएगा 
पूरे हों सपने
जीवन ढल जाएगा।

13.
चन्दा उतरा अँगना
मानो तुम आए
बाजे मोरा कँगना।

14.
चाँद उतर आया है
मन यूँ मचल रहा
ज्यों पी घर आया है।

15.
चमक रहा है दिनकर
'दमको मुझ-सा तुम'
मुस्काता है कहकर।

16.
हरदम हँसते रहना
क्या पाया-खोया
जीवन जीकर कहना।

17.
बदली जब-जब बरसे
आँखों का पानी
पी पाने को तरसे।

18.
अपने छल करते हैं
शिकवा क्या करना 
हम हर पल मरते हैं।

19.
करते वे मनमानी
कितना सहते हम
ओढ़ी है बदनामी।

-जेन्नी शबनम (8.4.24)
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