बुधवार, 25 नवंबर 2020

699. दागते सवाल (पुस्तक- नवधा)

दागते सवाल 

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यही तो कमाल है   
सात समंदर पार किए, साथ समय को मात दी   
फिर भी कहते हो-   
हम साथ चलते नहीं हैं।   

हर स्वप्न को बड़े जतन से ज़मींदोज़ किया   
टूटने की हद तक ख़ुद को लुटा दिया   
फिर भी कहते हो-   
हम साथ देते नहीं हैं।   

अविश्वास की नदी अविरल बह रही है   
दागते सवाल मुझे झुलसा रहे हैं   
मेरे अन्तस् का ज्वालामुखी, अब धधक रहा है   
फिर भी कहते हो-   
हम जलते क्यों नहीं हैं।   

हाँ! यह सत्य अब मान लिया 
सारे उपक्रम धाराशायी हुए   
धधकते सवालों की चिनगारी 
कलेजे को राख बना चुकी है   
साबुत मन तरह-तरह के सामंजस्य में उलझा   
चिन्दी-चिन्दी बिखर चुका है।   

बड़ी जुगत से चाँदनी वस्त्रों में लपेटकर   
जिस्म के मांस की पोटली बनाई है   
दागते सवालों से झुलसी पोटली 
सफ़र में साथ है   
ज़रा-सा थमो   
जिस्म की यह पोटली 
दिल की तरह खुलकर   
अब बस बिखरने को है।  

-जेन्नी शबनम (25. 11. 2020) 
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