सोमवार, 29 मार्च 2021

715. होली मइया (होली पर 21 हाइकु)

होली मइया 
(होली पर 21 हाइकु) 

******* 

1. 
उन्मुक्त रंग   
ऋतुराज बसंत   
फगुआ गाते।   

2. 
बंधन मुक्त   
भेदभाव से मुक्त,   
होली संदेश।   

3. 
फगुआ आया   
फूलों ने खिलकर   
रंग बिखेरा।   

4. 
घुँघट काढ़े   
पी की राह अगोरे   
बावरी प्रिया।   

5. 
कैसी ये होली   
नैहर है वीरान   
अम्मा न बाबा।   

6. 
माँ को ले गया,   
वक्त बड़ा निष्ठुर   
होली ले आया।   

7. 
झूम के गाओ   
जोगीरा सा-रा रा-रा   
रंग चिहुँका।   

8. 
रंग गुलाल   
पुआ व पकवान   
होली के यार।   

9. 
होली का पर्व   
सरहद पे पिया,   
कैसे मनाऊँ?   

10. 
मलो गुलाल   
चढ़ा प्रेम का रंग,   
मिटा मलाल।   

11. 
भूलाके रार   
खेलो होली त्योहार,   
ज़िन्दगी छोटी।   

12. 
लेकर आईं   
उत्सव की स्मृतियाँ   
होली का दिन।   

13. 
कैसे थे दिन   
नाचती थी हवाएँ   
होली के संग।   

14. 
अबकी होली   
पीर लिए है आई   
नहीं है माई।   

15. 
द्वार पे खड़ी   
मनुहार करती   
रँगीली होली।   

16. 
आज के दिन   
होली दुःखहरणी   
पीर हरती।   

17. 
नशे में धुत्त   
भाँग पीके नाचती   
होली नशेड़ी।   

18. 
होली की दुआ-   
अशुभ का नाश हो   
साल शुभ हो!   

19. 
ठिठका रंग   
देख जग का रंग   
आहत होली।   

20. 
होली का दिन   
मुँह लटका, खड़ा   
टेसू का फूल।   

21. 
होली मइया,   
मन में पीर बड़ा   
रीसेट करो।   

- जेन्नी शबनम (28. 3. 2021)
_______________________ 

सोमवार, 22 मार्च 2021

714. झील (झील पर 30 हाइकु)

झील 

(झील पर 30 हाइकु) 


*******   

1. 
अद्भुत छटा   
आत्ममुग्ध है झील   
ख़ुद में लीन।   

2. 
ता-ता थइया   
थिरकती झील   
वो अलबेली।   

3. 
अनवरत   
हुड़दंग मचाती   
नाचती झील।   

4. 
आसमाँ फेंके   
झील बेचारी हाँफे   
धरती लोके।   

5. 
कोई न साथी   
दुःख किससे बाँटे   
एकाकी झील।   

6. 
पीती रहती   
बड़ी प्यासी है झील   
अपना नीर।   

7. 
रोज़ बुलाती   
स्वप्न सुन्दरी झी ल   
मन लुभाती।   

8. 
अद्भुत झील   
वो कहाँ से है लाती?   
इतना पानी।   

9. 
झील लजाई   
चाँद ने जो पुकारा   
आकर मिला।   

10. 
झील-सा मन   
तेरी यादों की नाव   
बहती रही।   

11. 
ठहरा मन   
हलचल के बिना   
जीवन-झील।   

12. 
बुरा मानती   
प्रदूषण की मारी   
चुप है झील।   

13. 
झील उदास   
कोरोना का क़हर   
कोई न पास।   

14.
झील-झरना   
प्रकृति की संतान   
भाई-बहन।   

15. 
काश बहती   
नदियों-सी घूमती   
झील सोचती!   

16. 
चाँदनी रात   
झील की आगोश में   
बैठा है चाँद।   

17. 
थका सूरज   
करने को आराम   
झील में कूदा।   

18. 
झील है बेटी   
प्रकृति को है नाज़   
लेती बलैयाँ।   

19. 
झील व चाँद   
लुका-छुपी खेलते   
दिन व रात।   

20. 
झील निगोड़ी   
इतनी ख़ूबसूरत   
फिर भी तन्हा!   

21. 
झील सिखाती -   
ठहरे हुए जीना,   
नहीं हारना।   

22. 
कैसे वो पीती   
प्रदूषित है पानी   
प्यासी है झील।   

23. 
झील बेहाल   
मीन दम तोड़ती   
बंजर कोख।   

24. 
झील चकोर   
आसमाँ को बुलाती   
बैठी रहती।   

25. 
झील में नभ   
चुपचाप है छुपा   
चाँद ढूँढता।   

26. 
झील-सा स्वप्न   
चौहद्दी में है कैद   
बहा, न मरा।   

27. 
झील-सी आँखें   
देखती स्वप्न पूर्ण   
होती अपूर्ण।   

28. 
झील डरती,   
मानव व्यभिचारी   
प्राण न छीने!   

29. 
झील की गोद   
नरम-मुलायम   
माँ की गोद।   

30. 
झील है थकी,   
सदियों से है थमी   
क्यों यह कमी?  

- जेन्नी शबनम (22. 3. 2021)
_____________________________

गुरुवार, 18 मार्च 2021

713. अनाथ (पुस्तक- नवधा)

अनाथ 

*** 

काश! हवा या धुआँ बनकर   
आसमान में जाती   
चाँद की चाँदनी में उन तारों को ढूँढती   
जो बचपन में मेरे पापा बन गए   
और अब माँ भी उन्हीं का हिस्सा है।
   
न जाने वहाँ पापा कैसे होंगे   
इतने साल अकेले कैसे रहे होंगे?   
नहीं-नहीं! वे वहाँ किताबें पढ़ते होंगे   
वहाँ से देखते होंगे कि उनके सिद्धान्तों को   
हमने कितना जाना कितना अपनाया   
वे बहुत बूढ़े हो गए होंगे   
उम्र तो तारों की भी बढ़ती होगी   
क्या मुझे याद करते होंगे?
   
वे तो मुझे पहचानेंगे भी नहीं   
जब वे गए मैं छोटी बच्ची थी   
जब पहचानेंगे तो क्या अब भी   
गोद में बिठाकर दुलार करेंगे?   
बचपन की तरह अब भी रूठने पर मनाएँगे?   
उसी तरह प्यार करेंगे?
   
पर माँ तो पहचानती है   
अभी-अभी तो गई है   
ये विदाई तो अभी बहुत नई है   
मुझे देखते ही बड़े लाड़ से गले लगाएगी   
रोएगी, मुझे ढाढ़स देगी   
मेरे अनाथ हो जाने पर   
ख़ुद की क़िस्मत पर नाराज़ होगी   
रुँधी हुई उसकी आवाज़ होगी   
वह बताएगी कि कैसे अन्तिम साँस लेते समय   
चारों तरफ़ मुझे ढूँढ़ रही थी   
एक अन्तिम बार देखने को तड़प रही थी।  
 
कितनी बेबस रही होगी   
कितना कुछ कहना चाहती होगी   
मेरे अकेलेपन के ग़म में रोई होगी   
कितनी आवाज़ दी होगी मुझे   
पर साँसे घुट रही होंगी   
आवाज़ हलक में अटक रही होगी   
वह रो रही होगी, छटपटा रही होगी   
मेरी बहुत याद आ रही होगी   
यम से मिन्नत करती होगी कि ज़रा-सा वक़्त दे-दे   
बेटी से एक बार तो मिल लेने दे। 
  
वक़्त तो सदा का असंवेदनशील   
न पापा के समय मेरे लिए रुका   
न मम्मी के लिए   
अपनी मनमानी कर गया   
मम्मी चली गई   
बिना कुछ कहे चली गई   
तारों में गुम हो गई। 
  
अब कोई नहीं जो मेरा मन समझेगा   
अब कोई नहीं जो मेरा ग़म बाँटेगा   
मेरे हर दर्द पर मुझसे ज़्यादा तड़पेगा   
मेरी फ़िक्र में हर समय बेहाल रहेगा   
न पापा थे न मम्मी है   
दोनों अलविदा कह गए   
जिनको जाते वक़्त मैंने न सुना न देखा। 
  
काश! तुम दोनों तारों के झुरमुट में मिल जाओ   
एक बार गले लगा जाओ   
पापा के बिना जीने का हौसला तुमने दिया था   
अब तुम्हारे बिना जीने का हौसला कौन देगा माँ? 
  
दुआ करो मैं हवा या धुआँ बन जाऊँ   
एक बार तुमसे मिल आऊँ   
अपनी फ़रियाद किसे सुनाऊँ   
क्या करूँ कि हवा या धुआँ बन जाऊँ   
एक बार तुमसे मिल आऊँ   
बस एक बार।   
मेरी मम्मी 
-जेन्नी शबनम (18.3.2021) 
(मम्मी की स्मृति/अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस) 
________________________________ 

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

712. रिश्ते हैं फूल (रिश्ता पर 20 सेदोका)

रिश्ते हैं फूल 
(रिश्ता पर 20 सेदोका)
******* 

1. 
रिश्ते हैं फूल   
भौतिकता ने छीने   
रिश्तों के रंग-गंध   
मुरझा गए   
नहीं कोई उपाय   
कैसे लौटे सुगंध।   

2. 
रिश्ते हैं चाँद   
समय है बादल   
ओट में जाके छुपा   
समय स्थिर   
ओझल हुए रिश्ते   
अमावस पसरी।   

3. 
पावस रिश्ते   
वक़्त ने किया छल   
छिन्न-भिन्न हो गए   
मिटी है आस   
मन का प्रदूषण   
तिल-तिल के मारे।   

4. 
कुंठित मन   
रिश्ते हो गए ध्वस्त   
धीरे-धीरे अभ्यस्त   
वापसी कैसे?   
जेठ की धूप जैसे   
कठोर जिद्दी मन।   

5. 
रिश्तों का कत्ल   
रक्त बिखरा पड़ा   
अपने ही क़ातिल,   
रोते ही रहे   
कैसे दे पाते सज़ा   
अपराधी अपने।   

6. 
टोना-टोटका   
किसी ने तो है किया   
मृतप्राय है रिश्ता,   
ओझा भी हारा   
झाड़-फूँक है व्यर्थ   
हम हैं असमर्थ।   

7. 
मन आहत   
वक़्त का काला जादू   
रिश्ते बने बोझिल,   
वक़्त मिटाए   
नज़र का डिठौना   
औघड़ निरूपाए।   

8. 
बावरा मन   
रिश्तों की बाट जोहे   
दे करके दुहाई,   
आस का पंछी   
अब भी है जीवित   
शायद प्राण लौटें।   

9. 
रिश्ते पखेरू,   
उड़के चले गए   
दाना-पानी न मिला   
खो गए रिश्ते,   
चुगने नहीं आते   
कितना भी बुलाओ।   

10. 
जिलाके रखो   
मन भर दुलारो   
कभी खोए न रिश्ते   
मर जो गए   
कितने भी जतन   
लौटते नहीं रिश्ते।   

11. 
वाणी का तीर   
मन हुआ छलनी   
घायल हुए रिश्ते   
मन की पीर   
कोई कहे किससे   
दिल गया है छील।   

12. 
दुर्गम रास्ते   
चल सको अगर   
सँभलकर चलो   
रिश्ते सँभालो,   
पाँव छिले, लगा लो   
रिश्तों के मलहम।   

13. 
घायल रिश्ता   
लहूलुहान पड़ा   
ज्यों पर कटा पक्षी,   
छटपटाए   
पर उड़ न पाए   
आजीवन तड़पे।   

14. 
अजब दौर   
बँट गई दीवारें   
ज्यों रिश्ते हों कटारें,   
भेज न पाएँ   
मन की पीर-पाती   
बंद हो गए द्वारे।   

15. 
रिश्ते दरके   
रिस-रिसके बहे   
नस-नस के आँसू,   
मन घायल   
संवेदना है मौन   
समझे भला कौन?   

16. 
बादल रिश्ते   
जमकर बरसे   
प्रेम के फूल खिले,   
मन भँवरा   
प्रेम की फूलवारी   
सुगंध से अघाए।   

17. 
मौसम स्तब्ध   
रिश्ते की मौत हुई   
आसमाँ भी रो पड़ा,   
नज़र लगी   
हँसी भी रूठ गईं   
मातम है पसरा।   

18. 
खिलते रिश्ते   
साथ जो हैं चलते   
खनकती है हँसी   
साथ जो रहें   
कोई कभी न तन्हा   
आए आँधी या तूफाँ।   

19. 
गाछ-से रिश्ते   
कभी तो हरियाए   
कभी तो मुरझाए   
प्रीत-बरखा   
बरसते जो रहे   
गाछ उन्मुक्त जिए।   

20. 
रिश्तों की डोर   
कभी मत तू छोड़   
रख मुट्ठी में जोड़   
हाथ से छूटे   
कटी गुड्डी-से रिश्ते   
साबुत नहीं मिले।   

- जेन्नी शबनम (29. 1. 2021)   
______________________   

 

सोमवार, 8 मार्च 2021

711. अब नहीं हारेगी औरत

अब नहीं हारेगी औरत

******* 

जीवन के हर जंग में हारती है औरत   
ख़ुद से लड़ती-भिड़ती हारती है औरत   
सुख समेटते-समेटते हारती है औरत   
दुःख छुपाते-छुपाते हारती है औरत   
भावनाओं के जाल में उलझी हारती है औरत   
मन पर पैबंद लगाते-लगाते हारती है औरत   
टूटे रिश्तों को जोड़ने में हारती है औरत   
परायों से नहीं अपनों से हारती है औरत   
पति-पत्नी के रिश्तों में हारती है औरत   
पिता-पुत्र के अहं से हारती है औरत   
बेटा-बेटी के द्वन्द्व से हारती है औरत   
बहु-दामाद के छद्म से हारती है औरत   
दुनियादारी के संघर्ष से हारती है औरत   
दुनिया की भीड़ में गुम हारती है औरत   
अपनी चुप्पी से ही सदा हारती है औरत   
तोहमतों के बाज़ार से हारती है औरत   
ख़ुद सपनों को तोड़के हारती है औरत   
ख़ुद को साबुत रखने में हारती है औरत   
जीवन भर हँस-हँसकर हारती है औरत   
जाने क्यों मरकर भी हारती है औरत   
जीवन के हर युद्ध में हारती है औरत।   
अब हर हार को जीत में बदलेगी औरत   
किसी भी युद्ध में अब नहीं हारेगी औरत।  

- जेन्नी शबनम (8. 3. 2021)
_______________________________