प्रलय
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नहीं मालूम कौन ले गया रोटी और सपनों को
सिरहाने की नींद और तन के ठौर को
राह दिखाते ध्रुव तारे और दिन के उजाले को
मन की छाँव और अपनों के गाँव को,
धधकती धरती और दहकता सूरज
बौखलाई नदी और चीखता मौसम
बाट जोह रहा है, मेरे पिघलने और बिखरने का
मैं ढहूँ तो एक बात हो, मैं मिटूँ तो कोई बात हो।
- जेन्नी शबनम (24. 8. 2016)
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8 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 26 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-08-2016) को "जन्मे कन्हाई" (चर्चा अंक-2446) पर भी होगी।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Behtreen
BAHUT BADHIYA JENNY JI
बहुत सुन्दर ।
क्या बात है... आपकी कवितायेँ अंतिम पंक्तियों तक पहुंचकर झकझोर देती हैं. बहुत ही सुन्दर!!
बहुत सुन्दर
बहुत ही सुन्दर!
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