फूलवारी
*******
जब भी मिलने जाती हूँ
कसकर मेरी बाँहें पकड़, कहती है मुझसे-
अब जो आई हो, तो यहीं रह जाओ
याद करो, जब अपने नन्हे-नन्हे हाथों से
तुमने रोपा था, हम सब को
देखो कितनी खिली हुई है बगिया
पर तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता
शहर में न तो फूल है न फूलवारी
रूक जाओ न यहीं पर
बचपन के दिनों-सी बौराई फिरना।
- जेन्नी शबनम (5. 6. 2020)
____________________
7 टिप्पणियां:
सार्थक और महकती-मोहक रचना।
Good
पर्यावरण के संदर्भ में बहुत बहुत सुंदर रचना
बधाई
आपने जो लिंक भेजा उसे क्लिक करने पर यह लिंक नहीं खुल रहा है
काश, कि रुकना हो सकता.
फूल भी तो प्रेम करते हैं ... जानते हैं उनके सृजन करने वाले को ...
काश एक बगिया हर कोई साथ रख पाता ...
सुंदर भावमय ...👍
बहुत ही सुंदर रचना
एक टिप्पणी भेजें