रविवार, 26 जुलाई 2020

679. पहचाना जाएगा (तुकांत)

पहचाना जाएगा

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वक़्त मुट्ठी से फिसलता, जीवन कैसे पहचाना जाएगा   
कौन किसको देखे यहाँ, कोई कैसे पहचाना जाएगा।    

ज़मीर कब कहाँ मरा, ये अब दिखाएगा कौन भला   
हर शीशे में कालिख पुता, चेहरा कैसे पहचाना जाएगा।    

कौन किसका है सगा, भला यह कौन किसको बताएगा   
आईने में अक्स जब, ख़ुद का ही न पहचाना जाएगा।    

टुकड़ों-टुकड़ों में ज़िन्दगी बीती, किस्त-किस्त में साँसें   
पुरसुकून जीवन भला, अब कैसे ये पहचाना जाएगा।    

रूठ गए सब अपने-पराए, हर ठोकर याद दिलाएगी   
अपने पराए का भेद अब, 'शब' से न पहचाना जाएगा।  

- जेन्नी शबनम (26. 7. 2020) 
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5 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

उम्दा ग़ज़ल।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत सत्रीक लिखा है ... हर शेर सच्चा है ...
सच है बहुत मुश्किल होगा चेहरा पहचानना ...

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

बहुत सुन्दर

Madhulika Patel ने कहा…

बहुत सच बात लिखी है आपने ।बहुत मुश्किल है किसी को पहचानना ।सादर प्रणाम

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर