अज्ञात शून्यता
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एक शून्यता में प्रवेश कर गई हूँ
या कि मुझमें शून्यता प्रवाहित हो गई है,
थाह नहीं मिलता
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एक शून्यता में प्रवेश कर गई हूँ
या कि मुझमें शून्यता प्रवाहित हो गई है,
थाह नहीं मिलता
किधर खो गई हूँ
या जान-बुझकर खो जाने दी हूँ स्वयं को।
कँपकँपाहट है और डर भी
बदन से छूट जाना चाहते, मेरे अंग सभी,
हाथ में नहीं आता कोई ओस-कण
थर्रा रहा काल, कदाचित महाप्रलय है!
मुक्ति की राह है
या फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
शून्यता है पर, संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
नहीं समझ मुझे, यह क्या रहस्य है
मेरा या मेरी इस
अज्ञात शून्यता का।
या जान-बुझकर खो जाने दी हूँ स्वयं को।
कँपकँपाहट है और डर भी
बदन से छूट जाना चाहते, मेरे अंग सभी,
हाथ में नहीं आता कोई ओस-कण
थर्रा रहा काल, कदाचित महाप्रलय है!
मुक्ति की राह है
या फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
शून्यता है पर, संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
नहीं समझ मुझे, यह क्या रहस्य है
मेरा या मेरी इस
अज्ञात शून्यता का।
- जेन्नी शबनम (14. 9. 2010)
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agyaat shoonyata
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ek shoonyata mein pravesh kar gai hun
ya ki mujhmein shoonyata pravaahit ho gai hai,
thaah nahin milta
kidhar kho gai hun
ya jaan-bujhkar kho jaane dee hun svayam ko.
kanpkanpaahat hai aur dar bhi
badan se chhut jana chaahte, mere ang sabhi,
haath mein nahin aataa koi os-kan,
tharra raha kaal, kadaachit mahapralay hai!
mukti ki raah hai
ya fir koi bhayaanak gufa,
kyon kheench raha mujhe
jaane koun hai us paar?
shoonyata hai par, samvedanshunyata kyon nahin?
nahin samajh mujhe, yeh kya rahasya hai
mera ya meri is
agyaat shoonyata ka.
- Jenny Shabnam (14. 9. 2010)
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ya jaan-bujhkar kho jaane dee hun svayam ko.
kanpkanpaahat hai aur dar bhi
badan se chhut jana chaahte, mere ang sabhi,
haath mein nahin aataa koi os-kan,
tharra raha kaal, kadaachit mahapralay hai!
mukti ki raah hai
ya fir koi bhayaanak gufa,
kyon kheench raha mujhe
jaane koun hai us paar?
shoonyata hai par, samvedanshunyata kyon nahin?
nahin samajh mujhe, yeh kya rahasya hai
mera ya meri is
agyaat shoonyata ka.
- Jenny Shabnam (14. 9. 2010)
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8 टिप्पणियां:
आपका पोस्ट सराहनीय है. बधाई
is rahasya ko rahasya hi rahne den , shunyta me koi kiran dikhe shabdon se - mumkin hai , bahut hi achhi rachna................
vatvriksh ke liye ise bhejen
bahut khub likha hai aapne....
बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति ....
bahut hi bhaawuk rachna... tooo good di..
इस शैली में पहली बार आपकी सुंदर रचना पढने को मिली - धन्यवाद्
अज्ञात शून्यता...
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एक शून्यता में
प्रवेश कर गई हूँ,
या कि मुझमें
शून्यता प्रवाहित हो गई है,
jal me ghada duba ho
tab ..
थाह नहीं मिलता
किधर खो गई हूँ,
या जान बुझकर
खो जाने दी हूँ स्वयं को !
ha ajib lagata hai
jab shunyata ka ahsaas hota hai
कंपकपाहट है
और डर भी,
बदन से छूट जाना चाहते
सभी अंग मेरे,
हाथ में नहीं आता
कोई ओस-कण,
haa os bund ya tinke ka bhi aashray nahin hota tab
थर्रा रहा काल
कदाचित महाप्रलय है !
मुक्ति की राह है
या फिर कोई भयानक गुफ़ा,
क्यों खींच रहा मुझे
जाने कौन है उस पार?
haa shunyata me apaar shakti hai
vah khichata hai
tab ham rahate hai
n deh
n man
n reshte naate
शून्यता है पर
संवेदनशून्यता क्यों नहीं?
sanvedana me shunyata ki aatma
ka aabhaas hota hain
lekin vah kitna
ksht prad hai
aanandmay ...?
नहीं समझ मुझे
ये रहस्य क्या है,
मेरा या मेरी इस
अज्ञात शून्यता का!
bahut khub ...
__ जेन्नी शबनम __ १४. ०९. २०१०
बहुत ही सुन्दर मार्मिक कविता जो हर संवेदनशील हृदय की हो सकती है . वाह .
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