किसे लानत भेजूँ
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किस एहसास को जीऊँ आज?
ख़ुद को बधाई दूँ
या लानत भेजूँ उन सबको
जो औरत होने पर गुमान करती हैं
और सबसे छुपकर हर रोज़
पलायन के नए-नए तरीक़े सोचती हैं
जिससे हो सके जीवन का सुनिश्चित अन्त
जो आज ख़ुद के लिए तोहफ़े खरीदती हैं
और बड़े नाज़ से
आज काम न करने का हक़ जताती हैं।
कभी अधिकार के लिए हुए जंग में
औरतों को मिला एक दिन हक़ में
दुनिया की हुकूमतों ने
एक दिन हम औरतों के नाम कर
मुट्ठी में कर ली हमारी आज़ादी
एक दिन हम औरतों के नाम कर
मुट्ठी में कर ली हमारी आज़ादी
हम औरतें हार गईं
हमारी क़ौम हार गई
एक दिन के नाम पर
हमारी साँसें छीन ली गईं।
किसे लानत भेजूँ?
मैं ख़ुद को लानत भेजती हूँ
क्यों लगाती हूँ गुहार
एक दिन हम औरतों के लिए
जबकि जानती हूँ
आज भी कितनी स्त्रियों का जिस्म
लूटेगा, पिटेगा, जलेगा, कटेगा
गुप्तांगों को चीरकर
कोई हैवान रक्त-पान करेगा
चीख निकले तो ज़ुबान काट दी जाएगी
और बदन के टुकड़े
कचरे के ढेर पर मिलेगा।
धोखे से बच्चियों को कोठे पर बेचा जाएगा
जहाँ उसका जिस्म ही नहीं मन भी हारेगा
वह अबोध समझ भी न पाएगी
यह क्या हो रहा है
क्यों उसकी क़िस्मत में दर्द ही दर्द लिखा है?
बस एक दिन का जश्न
फिर एक साल का प्रश्न
जिसका नहीं है कोई जवाब
न हमारे पास
न हुक्मरानों के पास।
सब जानते हुए भी हम औरतें
हम औरतें जश्न मनाती हैं
बस एक दिन ही सही
हम ग़ुलाम औरतों के नाम।
- जेन्नी शबनम (मार्च 8, 2014)
(अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर)
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33 टिप्पणियां:
मित्रों।
तीन दिनों तक देहरादून प्रवास पर रहा। आज फिर से अपने काम पर लौट आया हूँ।
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आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (09-03-2014) को आप रहे नित छेड़, छोड़ता भाई मोटा ; चर्चा मंच 1546 पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
***आपने लिखा***मैंने पढ़ा***इसे सभी पढ़ें***इस लिये आप की ये रचना दिनांक10/03/2014 यानी आने वाले इस सौमवार को को नयी पुरानी हलचल पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...आप भी आना औरों को भी बतलाना हलचल में सभी का स्वागत है।
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अतः हम कह सकते हैं कि एकमंच बनाने का मुख्य उदेश्य हिंदी के साहित्यकारों व हिंदी से प्रेम करने वालों को एक ऐसा मंच प्रदान करना है जहां उनकी लगभग सभी आवश्यक्ताएं पूरी हो सकें।
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अपने पापों का ठीकरा औरत के सिर फोड़ने की लोगों की पुरानी आदत है - महिलादिवस सिर्फ़ एक मखौल है
आक्रोश और गहरी संवेदना लिए ... भापूर्ण अभिव्यक्ति ...
सबसे पहले तो इस सार्थक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं.जेनी जी बहुत बढ़िया रचना ..
महिला दिवस की शुभ कामनाएं...
बहुत सुंदर सृजन...!बधाई
RECENT POST - पुरानी होली.
oh!!
Marmik
जे्न्नी जी , बहुत सुन्दर कविता है यह आपकी। झकझोरती हुई। बधाई आपको !
vichaarottejak kavita ke liye
aapko badhaaee aur shubh kamna.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (11-03-2014) को "सैलाव विचारों का" (चर्चा मंच-1548) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कितना कड़वा सच है जिसे ना तो सुना जाता है ना ही सहा जाता है लेकिन जाने कितनी नारियाँ इस नारकीय सच को जी भी रही हैं और अपने जिस्मों पर झेल भी रही हैं ! इस यथार्थ के साथ महिला दिवस मनाने की परम्परा एक आडम्बर से अधिक कुछ नहीं ! अग्नि शलाका सी दहकती एक झुलसाती रचना !
पूरी कविता गहन भावार्थ समेटे है |आभार जेन्नी जी |
bilkul sahi kaha apne jenny di...umda likha hai...har ek shabd man par prahar
जेनी जी -- कविता बेहद सुन्दर है --बधाई। । सच -- समेट दी गई है औरतों की दुनिया . खुश हैं वोह जो डंडा और झंडा उठाये हक़ और अधिकार कि बात करती हैं। । अभी 33% का जिन्न निकलना बाकी है। . लम्बी चर्चा और चिंतन कि बात है।
आरिफ जमाल --नयी दिल्ली
इस रचना की तारीफ़ करूँ या दुःख जनित आक्रोश में दहकूं ?
’किसे लानत भेजूम----’
एक घुटा हुआ दर्द---रिसता हुआ कोढ--एक औरत होने का अभिषाप--
आंखे नम होती हैं हर रोज,हर रोज नए प्रश्न खडे हो जाते है---कि कब हम दे पाएंगी जवाब पलट कर?
अद्भुत...एक एक शब्द अहसासों को झकझोर देता है..
aapne naari man se judee har sthiti ko satiik tariike se ukera hai jo kabile taariph hai,sundar.
बहुत सुन्दर! आप निश्चित ही बधाई की पात्र हैं इस बेबाक टिप्पणी के लिए!स्त्रियों की दशा वास्तव में इससे बेहतर क्या है!
लाज़वाब रचना बहुत ही शशक्त और आज के दौर में ज़रूरी भी।
बहुत बेहतरीन बहुत बधाई है।
बहुत ही प्रभावशाली रचना शबनम जी----आपने शब्दों के माध्यम से आज महिलाओं की वास्तविक स्थिति को बहुत बढ़िया ढंग से प्रस्तुत किया है। एक बेहतरीन और धारदार रचना के लिये हार्दिक बधाइ स्वीकारें।
डा0हेमन्त कुमार
nice lines
sunder rachana
आज के यथार्थ का सही चित्रण |
एक एंसा कड़वा सच जिसे औरतें खुद भी स्वीकार नहीं करना चाहती हैं। एक वास्तविक मर्मस्पर्शी कविता । बधाई शब्द का अर्थ नहीं इस दर्द के सामने ।
यथार्थ को कहती विचारोतेजक रचना ।
बहुत खूब!
गहन आक्रोश और असह्य व्यथा को स्वर देती बहुत तेज -तर्रार कविता । जेन्नी जी की कविताएं बहुआयामी हैं और हर आयाम अपने में परिपूर्ण और सशक्त !!
siskti hai wo ghr ke bheetar aur bahr muskrati hai sbke samne......... ki.....wo nseebo wali hai use itna pyar krne wala pti mila. mgr sch wo bhi janti hai aur hm sb bhi.
kisse kahe?? ghr baandhe rkhne ke liye usne khamoshi odh li. 'wo' bdnami se drti hai aur ye bdnaami bhi to sbse jyada aurte hi krti hai. kaisa mhila diwas ! kaisi aazadi......bkwas hai sb.
aapki rchna achchhi lgti hai. kyonki .......shb nhi sahar ho tum . aur...kuchh aisiiiich hun main bhi apni shrton apne usulon pr jeene wali...... kisi ko ijazt nhi ki usme dkhl de. ha ha ha kya krun aisiich hun main to
गहन आक्रोश व्यक्त करती कविता .....समाज मे सुधार लाना बहुत आसान भी नहीं ......!!सशक्त उद्गार मन के ...
मेरी रचना को आप सभी की सराहना और इतना स्नेह मिला, मैं कृतज्ञ हूँ. मान देने के लिए आप सभी का हृदय से आभार!
bahut hi achha aur satik likha hai, mahila ki utpeedan par, aur azaadi ke naam se diye gaye bandhan par.
shubhkamnayen
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