शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

495. दूब (घास पर 11 हाइकु) पुस्तक 73-74

दूब

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1.

बारहों मास
देती बेशर्त प्यार
दुलारी घास
   

2.
नर्म-नर्म-सी 
हरी-हरी ओढ़नी  
भूमि ने ओढ़ी    

3.
मोती बिखेरे    
शबनमी दूब पे,  
अरूणोदय
  

4.
दूब की गोद
यूँ सुखद प्रतीति  
ज्यों माँ की गोद
  

5.
पीली हो गई 
मेघ ने मुँह मोड़ा    
दूब बेचारी   

6.
धरा से टूटी
ईश के पाँव चढ़ी
पावन दूभी
  

7.
तमाम रात
रोती रही है दूब
अब भी गीली
  

8.
नर्म बिछौना
पथिक का सहारा
दूब बेसुध
  

9.
कभी आसन
कभी बनी भोजन,
कृपालु दूर्वा  

10.
ठंड व गर्म
मौसम को झेलती
अड़ी रहती !

11.
कर्म पे डटी
कर्तव्यपरायणा,
दूर्वा-जीवन
   

- जेन्नी शबनम (21. 3. 2015)
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6 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

Bahut Khoob ! Ise Kahte Hain Gagar Mein Sagar Bharna .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-07-2015) को "कुछ नियमित लिंक और आ.श्यामल सुमन की पोस्ट का विश्लेषण" {चर्चा अंक - 2040} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में रविवार 19 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह .... वाह घास को साहित्य के रंगों में लिख डाला ...
सुन्दर हाइकू हैं सभी ...

ज्योति-कलश ने कहा…

दूब पर बहुत सुन्दर हाइकु !

Asha Joglekar ने कहा…

नर्म नर्म दूब से प्यारे प्यारे हाइकू।