मंगलवार, 18 मई 2021

720. अब डर नहीं लगता

अब डर नहीं लगता 

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अब डर नहीं लगता!   
न हारने को कुछ शेष   
न किसी जीत की चाह   
फिर किस बात से डरना?   
सब याद है   
किस-किस ने प्यार किया   
किस-किस ने दुत्कारा   
किस-किस ने छला   
किस-किस ने तोड़ा   
किस-किस को पुकारा   
किस-किस ने मुँह फेरा   
सब के सब   
अब कहानी-से हैं   
अतीत के सभी छाले   
दर्द नहीं देते   
अब सुकून देते हैं   
भीड़ में गुम होने की ख़ुशी देते हैं   
मुक्त होने का एहसास देते हैं   
बेफ़िक्र जीने का सन्देश देते हैं   
फिर किस बात से डरना?   
न खोने को कुछ शेष   
न कुछ पाने की चाह   
अब डर नहीं लगता!   

- जेन्नी शबनम (18. 5. 2021) 
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6 टिप्‍पणियां:

Bhavana V ने कहा…

Well said! This sense of neutrality only comes when you've went through every phase of life. Instead of clinging into past we choose to move on.. You remember all but at the end, No fear, No regrets!

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

जी हाँ जेन्नी जी। हो जाता है ऐसा। सब कुछ (या बहुत कुछ) खो देने वाला (या सह जाने वाला) बेख़ौफ़ हो जाता है। पर इसे उसके साथ कुदरत का इंसाफ़ तो नहीं माना जा सकता।

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

वाह।

Jyoti khare ने कहा…

बहुत ही अच्छी और सुंदर रचना
बधाई

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना... !!