एक सांता आ जाता
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मन चाहता
भूले-भटकेमेरे लिए दोनों हाथों में तोहफ़ा लिए
काश! आज मेरे घर एक सांता आ जाता।
गहरी नींद से मुझे जगा
अपनी झोली से निकाल थमा देता
मेरी हाथो में परियों वाली जादू की छड़ी
और अलादीन वाला जादुई चिराग़।
पूरे संसार को छू लेती
जादू की उस छड़ी से
और भर देती सबके मन में
प्यार-ही-प्यार, अपरम्पार।
चिराग़ के जिन्न से कहती-
पूरी दुनिया को दे दो
कभी ख़त्म न होने वाला अनाज का भंडार
अपनी झोली से निकाल थमा देता
मेरी हाथो में परियों वाली जादू की छड़ी
और अलादीन वाला जादुई चिराग़।
पूरे संसार को छू लेती
जादू की उस छड़ी से
और भर देती सबके मन में
प्यार-ही-प्यार, अपरम्पार।
चिराग़ के जिन्न से कहती-
पूरी दुनिया को दे दो
कभी ख़त्म न होने वाला अनाज का भंडार
सबको दे दो रेशमी परिधान
सबका घर बना दो राजमहल
न कोई राजा न कोई रंक
फिर सब तरफ़ दिखेंगे ख़ुशियों के रंग।
न कोई राजा न कोई रंक
फिर सब तरफ़ दिखेंगे ख़ुशियों के रंग।
काश! आज मेरे घर
एक सांता आ जाता।
-जेन्नी शबनम (25.12.2014)
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6 टिप्पणियां:
आमीन..भोली सी कल्पना
इंतज़ार रहेगा उस शांता का ...सुन्दर इच्छा
: पुरुष ,नारी ,दलित और शास्त्र
Aapkee Abhilasha awashya Hee Puri
Hogi . Sundar Kavita .
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-12-2014) को "वास्तविक भारत 'रत्नों' की पहचान जरुरी" (चर्चा अंक-1840) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नाराज है सांता हमसे....
बहुत खूब
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