इतनी-सी फ़िक्र
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दो चार फ़िक्र हैं जीवन के
मिले गर कोई राह, चले जाओ
बेफ़िक्री लौटा लाओ
कह तो दिया कि दूर जाओ
निदान के लिए सपने न देखो
राह पर बढ़ो, बढ़ते चले जाओ
वहाँ तक जहाँ पृथ्वी का अंत है
वहाँ तक जहाँ कोई दुष्ट है या संत है
बस इंसान नहीं है, प्यार से कोई पहचान नहीं है
या वहाँ जहाँ क्षितिज पर आकाश से मिलती है धरा
या वहाँ जहाँ गुम हो जाए पहचान, न हो कोई अपना
मत सोचो देस परदेस
भूल जाओ सब तीज-त्योहार
बिसरा दो सब प्यार-दुलार
लौट न पाओ कभी
मिल न पाओ अपनों से कभी
यह पीर मन में बसाकर रखना
पर हिम्मत कभी न हारना
यायावर-सा न भटकना तुम
दिग्भ्रमित न होना तुम
अकारण और नहीं रोना तुम
एक ठोस ठौर ढूँढकर
सपनों में हमको सजा लेना
मन में लेकर अपनों की यादें
पूरी करना बुनियादी ज़रूरतें
आस तो रहेगी तुम्हें
अपने उपवन की झलक पाने की
कुटुम्बों संग जीवन बीताने की
वंशबेल को देखने की
प्रियतमा के संग-साथ की
मिलन की किसी रात की
पर समय की दरकार है
तक़दीर की यही पुकार है
कोई उम्मीद नहीं कोई आस नहीं
किसी पल पर कोई विश्वास नहीं
रहा सहा सब पिछले जन्म का भाग्य है
इस जनम का इतना ही इंतज़ाम है
बाकी सब अगले जन्म का ख़्वाब है
निपट जाए जीवन-भँवर
बस इतना ही हिसाब है
चार दिन का जीवन
दो जून की रोटी
बदन पर दो टुक चीर
फूस का अक्षत छप्पर
बस इतनी-सी दरकार है
बस इतनी-सी तो बात है।
- जेन्नी शबनम (7. 7. 2020)
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12 टिप्पणियां:
आह! अच्छी कविता। दो टूक चीर, छप्पर बस इतनी सी बात है लेकिन दुनिया न जाने किस चीज़ के पीछे भाग रही है।
आपके शब्दों का चयन अनुपम होता है | बेहतरीन पंक्तियाँ | बहुत ही कांटे की बात। बस इतनी सी ही तो बात है
Mam your poem is very sweet and meaningful
बहुत खूब
सुन्दर रचना।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (११-०७-२०२०) को 'बुद्धिजीवी' (चर्चा अंक- ३५६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत सुंदर अर्थ पूर्ण रचना।
सुंदर रचना। जरूरतें तो कम ही होती हैं लेकिन हम चाहतों के पीछे पीछे अपनी जिंदगी बिता देते हैं। जरूरतों को अगर समझ लिया जाए तो जिंदगी बहुत खुशनुमा हो जाएगी।
सुन्दर सृजन
शब्द चयन बहुत बेहतर है
शानदार सृजन! इतनी सी बात इतनी सी फ्रिक
सुंदर प्रस्तुति।
इस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
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