सोमवार, 30 नवंबर 2009

103. रूमानी वादियों में सफ़ेद बादल / rumaani waadiyon mein safed baadal

रूमानी वादियों में सफ़ेद बादल

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मन की कलियाँ कुछ कच्ची हुई
सपनों की गलियाँ कुछ लम्बी हुई,
एक फ़रिश्ता मुझे बादल तक लाया
पुष्पक-विमान से आसमान दिखाया,
जैसे देव-लोक का हो कोई देव
मेरे सपनों का वो मीत 

हाथ बढ़ाया थामने को
साथ तफ़रीह करने को,
जाने ये कैसा संकोच
बावरा मन हुआ मदहोश,
होठों पर तिरी मुस्कान
काँप उठे सभी जज़्बात 

मरमरी सफ़ेद नर्म मुलायम
चहुँ ओर फैले शबनमी एहसास,
परी-लोक सा अति मनभावन
स्वर्ग-लोक सा सुन्दर पावन,
क्या सच में है ये जन्नत
या बस मेरा एक ख़्वाब 

दिखा वहाँ न कोई फ़रिश्ता
न मदिरा की बहती धारा,
न दूध की नदी विहंगम
न अप्सराओं का नृत्य मोहक,
दिखा सफ़ेद बादलों का दृश्य मनोरम
और बस हम दोनों का प्रेम-आलिंगन 

मेरे सपनों का देव-लोक
आसमान का सफ़ेद बादल,
और हमारा सफ़र सुहाना
जैसे परी-लोक की एक कथा,
अधसोई रात का एक स्वपन
रूमानी वादियों में सफ़ेद बादल 

- जेन्नी शबनम (27. 11. 2009)
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rumaani waadiyon mein safed baadal

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mann kee kaliyan kuchh kachchi hui
sapnon kee galiyan kuchh lambi hui,
ek farishtaa mujhe baadal tak laayaa
pushpak-vimaan se aasmaan dikhaya,
jaise dev-lok ka ho koi dev
mere sapnon ka wo meet.

haath badhaaya thaamne ko
saath tafreeh karne ko,
jaane ye kaisa sankoch
baawaraa mann hua madhosh,
hothon par tiree muskaan
kaanp uthe sabhi jazbaat.

marmaree safed narm mulaayam
chahun oar faile shabnami ehsaas,
paree-lok sa ati manbhaawan
swarg-lok sa sundar paawan,
kya sach mein hai ye jannat
ya bas mera ek khwaab.

dikha wahaan na koi farishta,
na madira kee bahti dhaaraa,
na doodh kee nadee vihangam,
na apsaraon ka nritya mohak,
dikha safed baadlon ka drishya manoram,
aur bas hum dono ka prem-aalingan.

mere sapnon ka dev-lok,
aasmaan ka safed baadal,
aur hamara safar suhaana,
jaise paree-lok kee ek kathaa,
adhsoi raat ka ek swapn,
roomaani waadiyon mein safed baadal.

- Jenny Shabnam (27. 11. 2009)
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बुधवार, 25 नवंबर 2009

102. मुझे जीना नहीं आता (अनुबन्ध/तुकान्त) / Mujhe jeena nahin aata (Anubandh/Tukaant)

मुझे जीना नहीं आता

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मुझे जीना नहीं आता, मुझे रहना नहीं आता    
दुनिया के रिवाजों पे मुझे चलना नहीं आता 

ज़माने के दुःखों पे, अब कभी मैं हँस नहीं पाती         
सच है, बेरहमी से अब मुझे हँसना नहीं आता           

इक शोहरत की चाह नहीं, न ऐसी कोई ख़्वाहिश है
ज़िन्दगी कर लूँ बसर, मुझे इतना नहीं आता  

छलक जाते हैं सौ आँसू, किसी के बिछुड़ने पर
सच है, रोना आता है पर मुझे मरना नहीं आता

यूँ तो हज़ारों रस्ते हैं, मंज़िल तक पहुँचने के
यक़ीनन अभी तक भी तो मुझे बढ़ना नहीं आता   

अपने दे जाएँ दग़ा, तो सह लूँगी ये दर्द मगर
बेवफ़ाई दोस्तों से, मुझे करना नहीं आता 

क्यों नहीं देखती आईना, सब पूछते यहाँ मुझसे 
सच है, ख़ुद से प्यार मुझे करना नहीं आता      

इक तस्वीर ही माँगी थी, तक़दीर नहीं माँगी थी 
या ख़ुदा! मुझे तुमसे कुछ कहना नहीं आता  

क्या-क्या ज़ब्त करे अब बोलो 'शब' अपने सीने में  
सच है, जो-जो ग़म मिलता है, मुझे सहना नहीं आता      

-जेन्नी शबनम (25. 11. 2009)
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Mujhe jeena nahin aataa

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mujhe jeena nahin aataa, mujhe rahna nahin aataa
duniya ke riwaajon pe mujhe chalna nahin aataa.

zamaane ke dukhon pe, ab kabhi main hans nahin paati
sach hai, berahmi se ab mujhe hansna nahin aataa.

ik shohrat ki chaah nahin, na aisi koi khwaahish hai
zindgi kar loon basar, mujhe itna nahin aataa.

chhalak jaate hain sau aansoo, kisi ke bhi bichhudne par
sach hai, ronaa aataa par mujhe marna nahin aataa.

yun to hazaaron raste hain, manzil tak pahunchne ke
yakinan abhi tak bhi to mujhe badhnaa nahin aataa.

apne de jaayen daghaa, to sah loongi ye dard magar
bewafaai doston se, mujhe karna nahin aataa.

kyon nahin dekhti aaina, sab puchhte yahaan
sach hai, khud se pyar mujhe karnaa nahin aataa.

ek tasweer hi maangi thee, taqdeer nahin maangi thee
yaa khudaa! mujhe tumse kahna nahin aataa.

kya-kya zabt kare ab bolo 'shab' apne is seene mein
sach hai, jo-jo gham milta hai, mujhe sahna nahin aataa. 

-Jenny Shabnam (25. 11. 2009)
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सोमवार, 23 नवंबर 2009

101. वदीयत दर्द का / vadeeyat dard ka

वदीयत दर्द का

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रूह लिपटी रही जिस्म से ऐसे
दो अजनबी मिल रहे हों जैसे,
पता पूछा मेरे ज़ीस्त से उसने
और जुदा हो गया सजदा करके 

वदीयत दर्द का उसने जो दिया
ज़ालिम रात रोज़ तड़पाती है,
सोचा था कि ख़त लिखूँ उसको
उफ़! पता भी तो न दिया उसने 

नादाँ दिल जुर्मे-वफ़ा का अंजाम देख
लरजते लम्स के कुछ लम्हे साथ मेरे,
सूफ़ियाना और फ़लसफ़ाना लफ़्ज़
काफ़ी नहीं कि ज़ेहन भूल जाए उसे 
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वदीयत - सौंपी हुई विरासत
लरजना - कांपना
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- जेन्नी शबनम (22. 11. 2009)
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vadeeyat dard ka

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rooh lipti rahi jism se aise
do ajnabi mil rahe hon jaise,
pata puchha mere zeest se usney
aur judaa ho gaya sajda karke.

vadeeyat dard ka usne jo diya
zaalim raat roz tadpaati hai,
socha tha ki khat likhoon usko
uf... pata bhi to na diya usney.

naadaan dil jurme-wafaa ka anjaam dekh
larajte lams ke kuchh lamhe saath mere,
soofiyaana aur phalsaphaana lafz
kaafi nahin ki zehan bhool jaye usey.
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vadeeyat - sanupi hui viraasat
larajna - kaanpnaa
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- jenny shabnam (22. 11. 2009)
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शनिवार, 21 नवंबर 2009

100. मैं / main (पुस्तक - लम्हों का सफ़र - 111)

मैं

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मैं, मैं, सिर्फ़ मैं,
सर्वत्र मैं...!

एक रूह मैं, एक इंसान मैं, एक हैवान मैं,
एक ख्व़ाब मैं, एक जज़्बात मैं, एक ख़्वाबगाह मैं,
अपना मकान मैं, अपना संसार मैं, अपना श्मशान भी मैं 

क़ैदी मैं, क़ैदखाना मैं, प्रहरी भी मैं,
वकील मैं, न्यायाधीश मैं, अदालत भी मैं,
जल्लाद मैं, फाँसी का फंदा मैं, मौत की सज़ायाफ़्ता मुजरिम भी मैं 

कफ़न मैं, कब्र मैं, मज़ार भी मैं,
चुनने वाले हाथ मैं, दफ़न होने वाला बदन भी मैं,
अपनी चिता पर रोने वाली मैं, अपनी मृत्यु का जश्न मनाने वाली भी मैं 

बंदगी में उठे हाथ मैं, सजदे में झुका सिर भी मैं,
खिलते फूल मैं, चुभते काँटे भी मैं,
इन्द्रधनुषी रंग मैं, लहू की लाली भी मैं,
ओस की नमी मैं, दहकती चिंगारी भी मैं,
रात का अँधियारा मैं, दिन का उजाला भी मैं,
सुख की तृप्ति मैं, दुःख की असह्य व्यथा भी मैं,
वर्तमान मैं, भविष्य भी मैं,
धरा मैं, गगन भी मैं,
आशा मैं, निराशा भी मैं,
स्वर्ग मैं, नरक भी मैं,
सार मैं, असार भी मैं,
आदि मैं, अंत भी मैं,
जीवन मैं, मृत्यु भी मैं,
इस पार मैं, उस पार भी मैं,
प्रेम मैं, द्वेष भी मैं,
ईश की संतान मैं, ईश्वर भी मैं,
आत्मा मैं, परमात्मा भी मैं 

मैं, मैं, सिर्फ़ मैं,
सर्वत्र मैं...!

- जेन्नी शबनम (31. 12. 1990)
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main

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main, main, sirf main,
sarvatra main...!

ek rooh main, ek insaan main, ek haivaan main,
ek khwaab main, ek jazbaat main, ek khwaabgaah main,
apna makaan main, apna sansaar main, apna shmashaan bhi main.

qaidi main, qaidkhana main, prahari bhi main,
vakeel main, nyaayaadheesh main, adaalat bhi main,
jallad main, faansi ka fanda main, maut ki sazaayaafta mujrim bhi main.

qafan main, kabra main, mazaar bhi main,
chunne wale haath main, dafan hone wala badan bhi main,
apni chita par rone waali main, apni mrityu ka jashn manane wali bhi main.

bandagi mein uthey haath main, sajde mein jhuka sir bhi main,
khilte phool main, chubhte kaante bhi main,
indradhanushi rang main, lahoo ki laali bhi main,
oas ki nami main, dahakti chingaari bhi main,
raat ka andhiyara main, din ka ujaala bhi main,
sukh ki tripti main, dukh ki ashaya vyatha bhi main,
vartmaan main, bhavisya bhi main,
dhara main, gagan bhi main,
aasha main, niraasha bhi main,
swarg main, narak bhi main,
saar main, asaar bhi main,
aadi main, ant bhi main,
jiwan main, mrityu bhi main,
is paar main, us paar bhi main,
prem main, dwesh bhi main,
iish ki santaan main, ishwar bhi main,
aatma main, parmaatma bhi main.

main, main, sirf main,
sarvatrra main...!

- Jenny Shabnam (31. 12. 1990)
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गुरुवार, 19 नवंबर 2009

99. वक़्त को इतनी बेसब्री क्यों / waqt ko itni besabri kyon

वक़्त को इतनी बेसब्री क्यों

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कुछ लम्हे चुराकर दे दो न
ठहर ज़रा हम भी जी लें न,
जब देखो छीन जाता हमसे
वक़्त की इतनी सख़्ती क्यों?

अब तो सहर की आस नहीं
अशक्त तन-मन में जान नहीं,
कब किस ओर निकल जाए
वक़्त की इतनी आवारगी क्यों?

चाँदनी ने रंग बिखेरे गेसुओं पर
इक लकीर सी उभरी माथे पर,
दिन गुज़रा भी नहीं रात हुई
वक़्त को इतनी जल्दी क्यों?

'शब' को एक सौग़ात दे दो
मोहलत की एक रात दे दो,
वक़्त को ज़रा समझाओ न
वक़्त को इतनी बेसब्री क्यों?

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2009)
(अपने जन्मदिन पर)
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waqt ko itni besabri kyon

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kuchh lamhe churaa kar de do na
thahar zaraa hum bhi ji lein na,
jab dekho chheen jaata humse
waqt ki itni sakhti kyon?

ab to sahar ki aas nahin
ashakt tan-man mein jaan nahin,
kab kis ore nikal jaaye
waqt ki itni aawargi kyon?

chaandni ne rang bikhere gesuon par
ik lakeer see ubhari maathey par,
din gujraa bhi nahin raat hui
waqt ko itni jaldi kyon?

'shab' ko ek saugaat de do
mohlat ki ek raat de do,
waqt ko zara samjhaao na
waqt ko itni besabri kyon ?

- jenny shabnam (16. 11. 2009)
(apne janmdin par)
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रविवार, 15 नवंबर 2009

98. वह अमरूद का पेड़ / Wah Amruud ka Ped (पुस्तक - लम्हों का सफ़र पेज - 35)

वह अमरूद का पेड़

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घर के सामने अमरूद का पेड़

आज भी वहीं पर स्थित है

बिछुड़े हुए अपनों की आस लगाए

घर को सूनी आँखों से निहारता

वक़्त के कुठाराघात से छलनी

नितान्त निःशब्द गाँव का मूक साक्षी

विषमताओं में ख़ुद को सहेजता

बीते लम्हों की याद में अकेला जीता। 


उस पेड़ की घनी मज़बूत डालियों पर चढ़कर

कच्चे अमरूद खाती थी एक नन्ही-सी लड़की

ढूँढ रही हूँ कब से उसे, न जाने कहाँ है अब वह लड़की

पूछती हूँ उस वृद्ध पेड़ से 

उसका पता या उसकी कोई निशानी

जो संजोकर रखा हो उसने। 


आज पेड़ भी असमर्थ है

उस लड़की की पहचान बताने में

नियति के खेल का दर्शक यह पेड़

झिझकता है शायद बताने में कि वह कौन थी

या सभी अपनों की तरह वह भी भूल गया है उसे।


वह लड़की खो गई है कहीं

बचपन भी गुम हो गया था कभी

उम्र से बहुत पहले 

वक़्त ने उसे बड़ा बना दिया था कभी

कहीं कोई निशानी नहीं उसकी

अब कहाँ ढूँढूँ उस नन्ही लड़की को?


सामने खड़ी है आज वह लड़की

कोई पहचानता नहीं उसे

वक़्त के साथ बदलती रफ़्तार ने

सदा के लिए खो दिया है उसका वजूद

सभी का इनकार तो सहज है

पर उस पेड़ ने भी न पहचाना

जिसकी डालियों पर चढ़कर वह नन्ही-सी लड़की

खाती थी कच्चे अमरूद।


वह प्यारा अमरूद का पेड़, आज भी राह जोहता है

उस नन्ही लड़की को खोजता है

जिसका सब खो चुका है

नाम, पहचान, निशान सब मिट चुका है।


उस पेड़ को कैसे याद दिलाए कि 

वह लड़की गुम है ज़माने में

पर विस्मृत नहीं कर सकी

अब तक उस अमरूद के पेड़ को

वह नन्ही लड़की वही है 

जो उसकी डालियों पर चढ़कर

खाती थी कच्चे अमरूद।


-जेन्नी शबनम (14.11.2009)
(बाल दिवस)
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Wah Amruud ka Ped

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ghar ke saamne Amruud ka ped
aaj bhi wahin par sthit hai
bichhude hue apnon ki aas lagaaye
ghar ko sooni aankhon se nihaarta
waqt ke kuthaaraaghaat se chhalni
nitaant nihshabd gaanv ka mook saakshi 
vishamtaaon mein khud ko sahejta
beete lamhon kee yaad mein akela jeeta.

us ped ki ghani mazboot daaliyon par chadhkar
kachche amruud khaati thee ek nanhi-see ladki,
dhundh rahee hoon kab se usey, na jaane kahan hai ab wah ladki
puchhti hoon us vriddh ped se
uska pata ya uski koi nishaani
jo sanjokar rakha ho usne.

aaj ped bhi asamarth hai
us ladki ki pahchaan bataane mein
niyati ke khel ka darshak yah ped
jhijhakta hai shayad bataane mein ki wah kaun thee
ya sabhi apno ki tarah wah bhi bhool gaya hai usey.

wah ladki kho gai hai kahin
bachpan bhi gum ho gayaa thaa kabhi
umra se bahut pahle 
waqt ne usey bada bana diya tha kabhi
kahin koi nishaani nahin uski
ab kahan dhoondhoon us nanhi ladki ko?

saamne khadi hai aaj wah ladki
koi pahchaanta nahin usey
waqt ke saath badalti raftaar ne
sadaa ke liye kho diya hai uska wajood
sabhi ka inkaar to sahaj hai
par us ped ne bhi na pahchaana
jiski daaliyon par chadhkar wah nanhi-see ladkee
khatee thee kachche amruud.

wah pyara amruud ka ped, aaj bhi raah johta hai
us nanhi ladki ko khojta hai
jiska sab kho chuka hai
naam, pahchaan, nishaan sab mit chuka hai.

us ped ko kaise yaad dilaaye ki
wah ladki gum hai zamaane mein
par vismrit nahin kar saki
ab tak us amruud ke ped ko
wah nanhi ladki wahi hai
jo uski daaliyon par chadhkar
khatee thee kachche amruud.

-Jenny Shabnam (14.11.2009)
(Children's day)
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गुरुवार, 12 नवंबर 2009

97. इन्सानियत मरती है (अनुबन्ध/तुकान्त) / Insaaniyat martee hai (Anubandh/Tukaant) (पुस्तक- नवधा)

इन्सानियत मरती है

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गुनहगारों को आजकल राहत मिलती है
बेगुनाही सज़ा और ज़िल्लत से घिरती है 

किसी की मासूमियत का कैसे हो फ़ैसला 
आजकल मासूमियत सरे-आम बिकती है 

इन्सानी मनसूबे की परख कुछ मुमकिन नहीं
हर चेहरे पे हज़ार पर्द-पोशी दिखती है 

दुनिया के दश्त में हर शख़्स है भटकता
सबकी तक़दीर में ज़मीन कहाँ टिकती है 

मतलब-परस्ती भर है सियासी बाज़ीगरी
टुकड़ों में बँटती मादरे-वतन सिसकती है 

अजब इत्तेफ़ाक एक राष्ट्र में महाराष्ट्र बसा
तंगदिल इतना जहाँ राष्ट्रभाषा पिटती है 

दहशतगर्दों ने ख़ुदा को न बख़्शा 'शब'
बज़्मे-ऐश देखो जब इन्सानियत मिटती है 
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बज़्मे-ऐश- ख़ुशी का जलसा
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-जेन्नी शबनम (15. 8. 2009)
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Insaaniyat martee hai

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gunahgaaron ko aajkal raahat miltee hai
begunaahi saza aur zillat se ghirtee hai.

kisi ki maasoomiyat ka kaise ho faisla 
aajkal maasoomiyat sare-aam biktee hai.

insaani mansoobe kee parakh kuchh mumkin nahin
har chehre pe hazaar pard-poshi dikhtee hai.

duniya ke dasht mein har shakhs hai bhataktaa
sabkee taqdeer mein zameen kahaan tikatee hai.

matlab-parasti bhar hai siyaasi baazigari
tukadon mein bantatee maadare-watan sisakatee hai.

ajab ittefaaq ek raashtra mein maharashtra basaa
tang dil itnaa jahaan rashtrabhasha pitatee hai.

dahshatgardon ne khuda ko na bakhsha 'shab'
bazme-aish dekho jab insaaniyat mitatee hai.
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bazme-aish- khushi ka jalsaa
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-Jenny Shabnam (15. 8. 2009)
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बुधवार, 11 नवंबर 2009

96. नाम तुम्हारा कभी लिया नहीं (अनुबन्ध/तुकान्त) / Naam tumhara kabhi liya nahin (Anubandh/Tukaant) (पुस्तक- नवधा)

नाम तुम्हारा कभी लिया नहीं

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उँगली के पोरों से मन में, नाम कभी लिखा नहीं
शून्य में न जा ठहरे, नाम तुम्हारा कभी लिया नहीं 

आस्था का दीप न जलता, न मन कोई राग बुनता
मन की पीर प्रतिमा क्या जाने, उसने कभी जिया नहीं 

कविताओं के छन्द में, क्षण-क्षण प्रतीक्षित मन में
भ्रम देता स्वप्न सदा, पर जाने क्यों कभी टिका नहीं 

व्यथा की घोर घटा और उस पर कर्त्तव्यों का ऋण बड़ा
विह्वल मन को ठौर तनिक, तुमने भी कभी दिया नहीं 

बूँद-बूँद स्वयं को पीकर, 'शब' की होती रातें नम
राह निहारती नमी पी ले, ऐसा कोई कभी मिला नहीं 

-जेन्नी शबनम (9. 11. 2009)
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Naam tumhara kabhi liya nahin

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ungli ke poron se man mein, naam kabhi likha nahin
shoonya mein n ja thahare, naam tumhara liya nahin.

aastha kaa deep na jalta, na man koi raag bunta
man kee peer pratima kya jaane, usne kabhi jiya nahin.

kavitaaon ke chhand mein, kshan-kshan prateekshit man mein
bhram deta है swapn sada, par jaane kyun kabhi tika nahin.

vyatha kee ghor ghata aur us par kartavyon ka rin bada
vihwal man ko thaur tanik, tumne bhi kabhi diya nahin.

boond-boond swayam ko pikar, 'shab' kee hoti raaten nam
raah nihaarti namee pee le, aisa koi kabhi mila nahin.

-Jenny Shabnam (9. 11. 2009)
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95. वर्जित फल / varjit phal (पुस्तक - लम्हों का सफ़र - 110)

वर्जित फल

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ख़ुदा का वर्जित फल इश्क़ था
जो कभी दो प्राणी ने, उत्सुकता में खाया था,
वो अनजानी गलती उनकी, इश्क़ की बुनियाद थी
जिससे मानव का पेड़ पनपता गया 

बीज तो इश्क़ का था
पर पेड़ जाने कैसे, इश्क़ से ही महरूम हो गया,
एक ही बीज से लाखों नस्ल उगे
हर नस्ल को पैदाइश याद रहा, बस मोहब्बत करना भूल गया

इश्क के पेड़ में, अमन-चैन का फल नहीं पनपता,
इश्क की डाली में, मोहब्बत का फूल नहीं खिलता

या खुदा! ये कैसा वर्जित फल था तुम्हारे बाग़ में
जिसका रंग इश्क़ का था
पर उसकी तासीर रंजिश में डूबे लहू की थी 

अगर ऐसा फल था तो तुमने लगाया क्यों?
या तो दो जिज्ञासु मानव न उपजाते
या ऐसे फल का बाग़ न लगाते 

- जेन्नी शबनम (अप्रैल 2009)
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varjit phal

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khudaa ka varjit phal ishq thaa
jo kabhi do praani ne, utsuktaa mein khaayaa thaa,
wo anjaani galti unki, ishq kee buniyaad thee
jisase maanav ka ped panaptaa gayaa.

beej to ishq ka thaa
par ped jaane kaise, ishq se hin mahroom ho gaya,
ek hi beej se laakhon nasl ugey
har nasl ko paidaaish yaad raha, bas mohabbat karna bhool gaya.

ishq ke ped mein, aman-chain ka phal nahin panaptaa,
ishq kee daali mein, mohabbat ka phool nahin khiltaa.

yaa khudaa! ye kaisa varjit phal thaa tumhaare baag mein
jiskaa rang ishq ka thaa
par uski taaseer ranjish mein doobe lahoo kee thee.

agar aisa phal thaa to tumne lagaya kyon?
yaa to do jigyaasu maanaw na upjaate
yaa aise phal ka baag na lagaate.

- Jenny Shabnam (April 2009)
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रविवार, 8 नवंबर 2009

94. तुम कहाँ गए (तुकांत) / tum kahaan gaye (tukaant)

तुम कहाँ गए

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एक साँझ घिर आयी है मन पर
मेरी सुबह लेकर तुम कहाँ गए?

एक फूल खिला एक दीप जला
सब बुझाकर तुम कहाँ गए?

बीता रात का पहर भोर न हुई
सूरज छुपाकर तुम कहाँ गए?

चुभती है अब अपनी ही परछाईं
रौशनी दिखाकर तुम कहाँ गए?

तुम्हारी ज़िद न छूटेगा दामन
तन्हा छोड़कर तुम कहाँ गए?

वक़्त-ए-रुख़सत आकर मिल लो
सफ़र अधूरा कर तुम कहाँ गए?

'शब' की बस एक रात अपनी
वो रात लेकर तुम कहाँ गए?

- जेन्नी शबनम (7. 11. 2009)
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tum kahaan gaye

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ek saanjh ghir aayee hai mann par
meri subah lekar tum kahaan gaye?

ek phool khilaa ek deep jalaa
sab bujhaa kar tum kahaan gaye?

beetaa raat ka pahar bhor na huee
sooraj chhupaa kar tum kahaan gaye?

chubhtee hai ab apnee hin parchhayeen
raushanee dikhaa kar tum kahaan gaye?

tumhaari zidd na chhutegaa daaman
tanhaa chhod kar tum kahaan gaye?

waqt-ae-rukhsat aakar mil lo
safar adhuraa kar tum kahaan gaye?

'shab' kee bas ek raat apnee
wo raat lekar tum kahaan gaye?

- jenny shabnam (7. 11. 2009)
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