शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

278. फ़िज़ूल हैं अब (क्षणिका)

फ़िज़ूल हैं अब

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फ़िज़ूल हैं अब
इसलिए नहीं कि सब जान लिया
इसलिए कि जीवन बेमक़सद लगता है
जैसे चलती हुई साँसें या फिर बहती हुई हवा
रात की तन्हाई या फिर दिन का उजाला
दरकार नहीं, पर ये रहते हैं अनवरत मेरे साथ चलते हैं
मैं और ये सब, फ़िज़ूल हैं अब। 

- जेन्नी शबनम (28. 8. 2011)
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