उऋण
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जिनसे उऋण होना नहीं चाहती
वो कुछ लम्हे
जिनमें साँसों पर क़र्ज़ बढ़ा
वो कुछ एहसास
जिनमें प्यार का वर्क चढ़ा
वो कुछ रिश्ते
जिनमें जीवन मिला
वो कुछ नाते
जिनमें जीवन खिला
वो कुछ अपने
जिन्होंने बेगानापन दिखाया
वो पराए
जिन्होने अपनापन सिखाया
ये सारे ऋण
सर माथे पर
ये सब खोना नहीं चाहती
इन ऋणों के बिना
मरना नहीं चाहती
ऋणों की पूर्णिमा रहे
अमावस नहीं चाहती
ये ऋण बढ़ते रहें
मैं उऋण होना नहीं चाहती।
- जेन्नी शबनम (1. 11. 2015)
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