बुधवार, 16 नवंबर 2022

754. मेरा पर्स : मेरी ज़िन्दगी

मेरा पर्स : मेरी ज़िन्दगी  

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मेरा पर्स मानो भानुमति का पिटारा है
उसमें मेरी ज़रूरत की सभी चीज़ें हैं। 
 
अनुकूल-प्रतिकूल स्थितियों में
सब कुछ बेधड़क निकल आता है
मेरी दवाओं से लेकर
बिस्किट, चॉकलेट, पानी
काग़ज़, कलम, रूमाल
और जो काग़ज़ पर आज तक उतरे नहीं 
ऐसी कई ख़याल
कुछ मास्क, सैनिटाइजर, मेट्रो कार्ड
अचानक ख़रीददारी के लिए थैले
हाँ! मुझे क्रेडिट-डेबिट कार्ड का 
इस्तेमाल करना नहीं आता
तो कुछ कैश रुपये, जिससे मेरा काम चल जाए
मेरा पहचान पत्र और देह-दान कार्ड भी है
आकस्मिक दुर्घटना के बाद अस्पताल पहुँच सकूँ
देह-दान का कार्ड 
जिसपर दो मोबाइल नम्बर लिखे हुए हैं
ताकि दान-प्रक्रिया की अनुमति देने में देर न हो। 

सोचती हूँ कि मेरी ज़रूरतें कितनी कम हैं
कफ़न और साँसें, जो मेरे पर्स में नहीं हैं
बाक़ी जीवन से मृत्यु तक के सफ़र का सामान है। 

पर्स तो बदलती हूँ पर सामान नहीं
इन सामानों के बिना जीना मुश्किल है
और मरना भी आसान नहीं
जाने कब ज़रूरत पड़ जाए
मेरे पर्स में मेरी ज़िन्दगी पड़ी है
और मृत्यु के बाद की मेरी इच्छा भी। 

-जेन्नी शबनम (16.11.2022)
(जन्मदिन)
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