शनिवार, 18 जून 2016

516. मन-आँखों का नाता (5 सेदोका)

मन-आँखों का नाता  
(5 सेदोका)
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1.
गहरा नाता  
मन-आँखों ने जोड़ा  
जाने दूजे की भाषा,  
मन जो सोचे -  
अँखियों में झलके  
कहे संपूर्ण गाथा !  

2.
मन ने देखे  
झिलमिल सपने  
सारे के सारे अच्छे,  
अँखियाँ बोलें -  
सपने तो सपने  
नहीं होते अपने !  

3.  
बावरा मन  
कहा नहीं मानता  
मनमर्ज़ी करता,  
उड़ता जाता  
आकाश में पहुँचे  
अँखियों को चिढ़ाए !  

4.  
आँखें ही होती  
यथार्थ हमजोली  
देखे अच्छी व बुरी  
मन बावरा  
आँखों को मूर्ख माने  
धोखा तभी तो खाए !  

5.  
मन हवा-सा  
बहता ही रहता  
गिरता व पड़ता,  
अँखियाँ रोके
गुपचुप भागता  
चाहे आसमाँ छूना !  

- जेन्नी शबनम (18. 6. 2016)

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