रविवार, 27 नवंबर 2016

532. मानव-नाग

मानव-नाग  
 
*** 

सुनो! अगर सुन सको    
ओ मानव केंचुल में छुपे नाग!
   
डसने की आज़ादी मिल गई तुम्हें   
पर जीत ही जाओगे 
यह भ्रम क्यों? 
केंचुल की ओट में छुपकर   
नाग जाति का अपमान क्यों करते हो?  
नाग बेवजह नहीं डसता 
पर तुम?
  
धोखे से कब तक धोखा दोगे   
बिल से बाहर आकर पृथक होना होगा   
छोड़ना होगा केंचुल तुम्हें   
कौन नाग, कौन मानव   
किसका केंचुल, किसका तन   
बीन बजाता संसार सारा   
वक़्त के खेल में सब हारा। 
   
ओ मानव-नाग!
कब तक बच पाओगे?   
नियति से आख़िर हार जाओगे   
समय रहते मानव बन जाओ   
अन्यथा वह होगा, जो होता है 
ज़हरीले नाग का अन्त   
सदैव क्रूर होता है।

-जेन्नी शबनम (27.11.2016)
____________________

सोमवार, 14 नवंबर 2016

531. बुझ क्यों नहीं जाता है सूरज

बुझ क्यों नहीं जाता है सूरज

*******   

बुझ क्यों नहीं जाता है सूरज   
क्यों चारों पहर ये जलता है,  
दो पल चैन से सो लूँ मैं भी   
क्या उसका मन नहीं करता है?   

बुझ क्यों नहीं जाता है सूरज   
क्यों चारों पहर ये जलता है   

देस परदेस भटकता रहता   
घड़ी भर को नहीं ठहरता है,   
युगों से है वो ज्योत बाँटता   
मगर कभी नहीं वह घटता है   

बुझ क्यों नहीं जाता है सूरज   
क्यों चारों पहर ये जलता है   

कभी गुर्राता कभी मुस्काता   
खेल धूप-छाँव का चलता है,   
आँखें बड़ी-सी ये मटकाता   
जब बादलों में वह छुपता है   

बुझ क्यों नहीं जाता है सूरज   
क्यों चारों पहर ये जलता है   

कभी ठंडा कभी गरम होता   
हर मौसम-सा रूप धरता है,   
शोला-किरण दोनों बरसाता   
मगर ख़ुद कभी नहीं जलता है   

बुझ क्यों नहीं जाता है सूरज   
क्यों चारों पहर ये जलता है   

जाने कितने ख़्वाब सँजोता    
वो हर दिन घर से निकलता है,   
युगों-युगों से ख़ुद को जलाता   
वो सबके लिए ये सहता है   

बुझ क्यों नहीं जाता है सूरज   
क्यों चारों पहर ये जलता है   

- जेन्नी शबनम (14. 11. 2016) 
(बाल दिवस)  
_____________________

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

530. पुकार (क्षणिका)

पुकार

*******

हाँ! मुझे मालूम है  
एक दिन तुम याद करोगे  
मुझे पुकारोगे पर मैं नहीं आऊँगी  
चाहकर भी न आ पाऊँगी  
इसलिए जब तक हूँ क़रीब रहो
ताकि उस पुकार में ग्लानि न हो  
महज़ दूरी का गम हो

- जेन्नी शबनम (4. 11. 2016)
____________________