सोमवार, 27 दिसंबर 2010

197. तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया

तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया

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चाह थी मेरी
तीन पल में सिमट जाए दूरियाँ
हसरत थी
तुम्हारी आँखों से देखूँ दुनिया 

बाहें थाम, चल पड़ी साथ
जीने को खुशियाँ
बंद सपने मचलने लगे
मानो खिल गई, सपनों की बगिया 

शिलाओं के झुरमुट में
अवशेषों की गवाही
और थाम ली तुमने बहियाँ
जी उठी मैं फिर से सनम
जैसे तुम्हारी साँसों से
जीती हों वादियाँ 

उन अवशेषों में छोड़ आए हम
अपनी भी कुछ निशानियाँ
जहाँ लिखी थी इश्क़ की इबारत
वहाँ हमने भी रची कहानियाँ 

मिलेंगे फिर कभी
ग़र ख़्वाब तुम सजाओ
रहेंगी न फिर मेरी वीरानियाँ
बिन कहे ही तय हुआ
साथ चलेंगे हम
यूँ ही जीएँगे सदियाँ 

- जेन्नी शबनम (18. 12. 2010)
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