ओ पापा!
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ओ पापा!
तुम गए
साथ ले गए
मेरा आत्मबल
और छोड़ गए मेरे लिए
कँटीले-पथरीले रास्ते
जिसपर चलकर
मेरा पाँव ही नहीं मन भी
छिलता रहा।
तुम्हारे बिना
जीवन की राहें बहुत कठिन रहीं
गिर-गिरकर ही सँभलना सीखा
कुछ पाया बहुत खोया
जीवन निरर्थक चलता रहा।
तुम्हारी यादें
और चिन्तन-धारा को
मन में संचितकर
अब भरना है स्वयं में आत्मविश्वास
और उतरना है
जीवन-संग्राम में।
भले अब
जीवन के अवसान पर हूँ
पर जब तक साँस तब तक आस।
- जेन्नी शबनम (20. 6. 2021)
(पितृ दिवस)
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