रविवार, 8 नवंबर 2020

694. हम (11 हाइकु) प्रवासी मन - 119, 120

हम 


******* 

1. 
चाहता मन-   
काश पंख जो होते   
उड़ते हम।    

2. 
जल के स्रोत   
कण-कण से फूटे   
प्यासे हैं हम।    

3. 
पेट मे आग   
पर जलता मन,   
चकित हम।    

4. 
हमसे जन्मी   
मंदिर की प्रतिमा,   
हम ही बुरे।    

5. 
बहता रहा   
आँसुओं का दरिया   
हम ही डूबे।  

6. 
कोई  सगा   
ये कैसी है दुनिया?   
ठगाए हम।     

7. 
हमने ही दी   
सबूत  गवाही,   
इतिहास मैं।  

8.
यायावर थी, 
शब्दों में अब मिली,
पनाह मुझे।      

9. 
मिला है शाप,   
अभिशापित हम   
किया  पाप।    

10. 
अकेले चले   
सूरज-से जलते   
जन्मों से हम।    

11. 
अड़े ही रहे   
आँधियों में अडिग   
हम हैं दूब 

- जेन्नी शबनम (7. 11. 2020)
_____________________