गुरुवार, 21 जून 2012

353. कासे कहे

कासे कहे

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मद्धिम लौ 
जुगनू ज्यों
वही सूरज
वही जीवन
सब रीता
पर बीता!
जीवन यही
रीत  यही
पीर पराई
भान नहीं
सब खोया 
मन रोया!
कठिन घड़ी
कैसे कटी
मन तड़पे  
कासे कहे
नहीं अपना 
सब पराया!
तनिक पूछो
क्यों चाहे
मूक पाखी
कोई साथी
एक बसेरा
कोई सहारा!

- जेन्नी शबनम (21. 6. 2012)
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