क्यों नहीं आते
अकसर सोचती हूँ
*******
इतने भारी-भारी-से
ख़याल क्यों आते हैं
जिनको पकड़ना
मुमकिन नहीं होता
और अगर पकड़ भी लूँ
तो उसके बोझ से
तो उसके बोझ से
मेरी साँसे घुटने लगती हैं
हल्के-फुल्के तितली-से
ख़याल क्यों नहीं आते
जिन्हें जब चाहे उछलकर पकड़ लूँ
भागे तो उसके पीछे दौड़ सकूँ
और लपककर मुट्ठी में भर लूँ
इतने हल्के कि अपनी जेब में भर लूँ
या फिर कहीं भी छुपा कर रख सकूँ।
- जेन्नी शबनम (13. 3. 13)
__________________