इश्क़ की केतली
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इश्क़ की केतली में
पानी-सी औरत
और चाय पत्ती-सा मर्द
जब साथ-साथ उबलते हैं
चाय की सूरत
चाय की सीरत
नसों में नशा-सा पसरता है
पानी-सी औरत का रूप
बदल जाता है चाय पत्ती-से मर्द में
और मर्द घुलकर
दे देता है अपना सारा रंग
इश्क़ ख़त्म हो जाए
मगर हर कोशिशों के बावजूद
पानी-सी अपनी सीरत
नहीं बदलती औरत
मर्द अलग हो जाता है
मगर उसका रंग खो जाता है
क्योंकि इश्क़ की केतली में
एक बार
औरत मर्द मिल चुके होते हैं।
- जेन्नी शबनम (20. 5, 2016)
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