सोमवार, 9 जनवरी 2012

313. जाने कैसे

जाने कैसे

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किसी अस्पृश्य के साथ खाए एक निवाले से
कई जन्मों के लिए
कोई कैसे पाप का भागीदार बन जाता है
जो गंगा में एक डुबकी से धुल जाता है
या फिर गंगा के बालू से मुख-शुद्धि कर
हर जन्म को पवित्र कर लेता है। 
अतार्किक!
परन्तु सच का सामना कैसे करें?
हमारा सच, हमारी कुण्ठा
हमारी हारी हुई चेतना
एक लकीर खींच लेती है
फिर हमारे डगमगाते क़दम
इन राहों में उलझ जाते हैं और
मन में बसा हुआ दरिया
आसमान का बादल बन जाता है।  

- जेन्नी शबनम (9.1.2012)
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