गुरुवार, 24 सितंबर 2009

85. पुरातत्व और अवशेष / puraatatwa aur avshesh

पुरातत्व और अवशेष

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तुम जानते हो, पुरातत्वों के ज्ञाता हो
बुलन्द इमारत को खण्डहर बनने में सदियाँ गुज़रती हैं
तुम पहचानते हो, प्राचीन कलाओं के मर्मज्ञ हो
जीवन्त मूर्तियाँ वक़्त की धार से विखण्डित हो जाती हैं 

तुम समझते हो, अवशेषों के पारखी हो
हम कैसे महज़ एक पल में अपने ही अवशेष रह गए
तुम मानते हो, रहस्यों के विचारक हो
हम कैसे वक़्त के विरुद्ध 
जीर्ण अवस्था में जीवित रह गए 

तुम ही बताओ, हम क्या बताएँ कि एक ख़ामोश आँधी
कैसे पलभर में सारे सपने तोड़ हमें बिखरा जाती है
कैसे कोई बाग़ क्षणभर में उजड़ जाता है
कैसे कोई पौधा ठूँठ भर रह जाता है
कैसे आलिशान महल जर्जर बन जाता है
कैसे ख़्वाहिशें बसने से पूर्व छीन ली जाती हैं। 

तुम पुरातत्ववेत्ता हो, सुरक्षित रखना जानते हो
जीर्णोद्धार कर खण्डहर को 
सदियों तक संरक्षित कर सकते हो
तुम कला-विशेषज्ञ हो, कला को निखारना जानते हो
अपनी दक्षता से निष्प्राण मूर्तियों में जीवन्तता ला सकते हो 

तुम इतना तो कर ही सकते हो
जो भी इमारत बनाओ, ठोस धरातल पर बनाओ
ताकि लम्हाभर में कोई आँधी, उसे ध्वस्त न कर सके
पौधों को सींचते रहो, ताकि बेमौसम मुरझा न सके
ख़्वाहिशों को ज़मीन-आसमान दो, ताकि वे पल सकें
हमें सँवारो, ताकि हमारे अवशेषों में भी कोई हमें ढूँढ सके 

तुम अपनी समस्त ऊर्जा से इस अक्षुण्ण सम्पदा को सँभालो
जिससे वक़्त से पहले खण्डहर बन जाने का अभिशाप, कोई न झेले
अपने प्रेम और विश्वास से अवशेषों को बचाकर रखो
जिससे युगों बाद भी अपनी निशानियाँ स्वयं हम भूल न सकें 

- जेन्नी शबनम (22.9.2009)
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puraatatwa aur avshesh

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tum jaante ho, puraatatwon ke gyaata ho
buland imaarat ko khandhar banne mein sadiyan guzarti hain
tum pahchaante ho, praacheen kalaaon ke marmagya ho
jiwant moortiyan waqt kee dhaar se vikhandit ho jati hain.

tum samajhte ho, awsheshon ke paarkhi ho
hum kaise mahaz ek pal mein apne hin awshesh rah gaye 
tum maante ho, rahasyon ke vichaarak ho
hum kaise waqt ke viruddh jirn awastha mein jiwit rah gaye.

tum hi batao, hum kya batayen ki ek khaamosh aandhi
kaise palbhar mein saare sapne tod hamein bikhraa jaati hai
kaise koi baag kshanbhar mein ujad jata hai
kaise koi paudhaa thoonth bhar rah jata hai
kaise aalishaan mahal jarjar ban jata hai
kaise khwaahishein basne se purv chheen lee jati hain.

tum puratatvavetta ho, surakshit rakhna jante ho
jirnoddhaar kar khandhar ko sadiyon tak sanrakshit kar sakte ho
tum kalaa-visheshagya ho, kalaa ko nikharnaa jaante ho
apni dakshtaa se nishpraan moortiyon mein jiwantata laa sakte ho.

tum itnaa to kar hi sakte ho
jo bhi imaarat banao, thos dharatal par banao
taaki lamhabhar mein koi aandhi, usey dhwast na kar sake
paudhon ko seenchte raho, taaki bemausam murjhaa na sake
khwaahishon ko zameen-aasmaan do, taaki we pal saken
hamein sanwaaro, taaki hamare awsheshon mein bhi koi hamein dhoondh sake.

tum apni samast urjaa se is akshunna sampadaa ko sambhaalo 
jisase waqt se pahle khandhar ban jaane ka abhishaap, koi na jhele
apne prem aur vishwaas se awshesho ko bachaakar rakho 
jisase yugon baad bhi apni nishaaniyan swayam hum bhool na saken.

- Jenny Shabnam (22.9.2009)
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सोमवार, 14 सितंबर 2009

84. उसका आख़िरी कलाम है (तुकान्त) / uska aakhiree kalaam hai (tukaant)

उसका आख़िरी कलाम है

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हर ख़्वाब मेरा वो पालता रहा, जो पल-पल मन मेरा चाहता रहा
कितना जान-निसार वो इंसान है, मेरा सुकून उसकी ज़िन्दगी का करार है 

मेरी मुस्कुराहटों से खिलता रहा, मुझे तस्वीर में रोज़ ढूँढ़ता रहा
दर्द मेरा अपने सीने में भरता है, मुझे तराशना बस उसका कमाल है 

मेरे ज़ख्म रोज़ सिलता रहा, जो ज़माने से मुझे मिलता रहा
कैसे कह दें कि हमें दूर जाना है, उसके हाथ में ज़िन्दगी की कमान है 

मुझे हर्फ़-हर्फ़ रोज़ सुनता रहा, जाने कितने ख़्वाब बुनता रहा
हर सफ़हे पर बस मेरा नाम है, ये शायद उसका आख़िरी कलाम है 

- जेन्नी शबनम (6. 9. 2009)
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uska aakhiree kalaam hai

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har khwaab mera wo paaltaa rahaa, jo pal-pal man mera chaahtaa raha
kitna jaan-nisaar wo insaan hai, mera sukoon uski zindgi ka karaar hai.

meri muskuraahaton se khiltaa raha, mujhe tasweer mein roz dhundhta raha
dard mera apne seene mein bhartaa hai, mujhe taraashnaa bas uskaa kamaal hai.

mere zakham roz siltaa raha, jo zamaane se mujhe miltaa raha
kaise kah dein ki hamein door janaa hai, uske haath mein zindgi ka kamaan hai.

mujhe harf-harf roz suntaa rahaa, jaane kitne khwaab buntaa rahaa
har safahe par bas mera naam hai, ye shaayad uskaa aakhiree kalaam hai.

- jenny shabnam (6. 9. 2009)
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शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

83. किसी कोख में नहीं जाऊँगी माँ

किसी कोख में नहीं जाऊँगी माँ

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अब तक न जाने कितने कोख से जबरन छीनी गई
जीवन जीने की तमन्ना, हर बार बेबस कुचली गई
जानती हूँ, बस थोड़ी देर हूँ कोख में तुम्हारी माँ
आज एक बार फिर, बेदर्दी से मारी जाऊँगी माँ 

माँ! जानती हो, तुम्हारी कोख में पहले भी मैं ही आई थी
दोनों बार तुम्हारी लाचारी और समाज की क्रूरता भोगी थी
ज़िद थी, तुम्हारी कोख से जन्म लूँ, इसलिए आती थी
शायद तुम्हारी तरह मैं भी सुन्दर बनना चाहती थी  

माँ! जानती हो, इस घर में तुमसे भी पहले मैं आना चाहती थी
किसी दूसरी माँ के गर्भ में समा, इस घर में पनाह चाहती थी
बाबा की बुज़दिली और धर्म-परम्परा के नाम पर बलि चढ़ी थी
उस बिनब्याही कलंकित माँ के साथ, मैं भी जलकर मरी थी 

माँ! देखो न! बाबा की वही कायरता, वही पौरुष-दम्भ
मैं क़त्ल होऊँगी और तुम एक बार फिर होगी गाभिन
सात फेरों के बाद भी तुम्हारा अवलम्ब बन न सके बाबा
अपनी माँ-बहन है प्रिय, पर तुम और मैं क्यों नहीं माँ?

माँ! तुम्हें जलाया नहीं, न निष्कासित किया है
शायद तुम्हारे बाबा का धन तुम्हें जीवित रखता है
तुम्हारी कोख बाँझ नहीं, पुत्र की गुंजाइश बची है
शायद इसलिए तुम्हारी क़िस्मत, पूरी रूठी नहीं है  

माँ! तुम भी तो कितना सहती रही हो
स्त्री होने का ख़म्याज़ा भुगतती रही हो
दहेज तो पूरा लाई, पर वंश-वृक्ष उगा नहीं पाई
हर फ़र्ज़ निभाती रही, एक यह धर्म निभा नहीं पाई  

माँ! अभिमन्यु ने पूरी कोख से पाया था अधूरा ज्ञान
मैं अधूरी कोख से पा गई, इस दुनिया का पूरा ज्ञान
दो महीने में वह सब देख आई, जो स्त्री सहती है
दोष किसी और का, वह अग्नि-परिक्षा देती रहती है 

माँ! तुम्हारी तरह अपराधी बन मैं जीना नहीं चाहती
तुम्हारी कोख में आकर तुम्हें मैं खोना नहीं चाहती
अब तुम्हारी कोख में कभी नहीं आऊँगी माँ
अब किसी कोख में कभी नहीं जाऊँगी माँ  

-जेन्नी शबनम (9.9.9)
(कन्या भ्रूण-हत्या)
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सोमवार, 7 सितंबर 2009

82. तुम्हें इंसान बना दिया

तुम्हें इंसान बना दिया

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सज़दे में झुक गया सिर
जब रगों में इश्क़ पसर गया
वक़्त की देने गवाही
देखो! ख़ुदा भी ज़मीन पे उतर गया 

पहलू में एक बुत था
तुमने जीवन भर दिया
पाकीज़गी का ये आलम देखो
अश्कों में तुमने, चरणामृत भर दिया 

अपनी हँसी तुम्हें थमाकर
तुममें दर्द भी भर दिया
फ़रिश्ता हो अब भी, तुम मेरे
देखो! आज तुम्हें इंसान कर दिया 

अब जाओगे कैसे, कहीं तुम
तुम्हें अपने दिल में समा दिया
हम कहते थे, कि तुम ख़ुदा हो
जाओ, आज तुम्हें इंसान बना दिया 

- जेन्नी शबनम (3. 9. 2009)
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tumhen insaan banaa diya

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sazde mein jhuk gaya sir
jab ragon mein, ishq pasar gaya
waqt kee dene gawaahi 
dekho! khudaa bhi zameen pe utar gaya.

pahloo mein ek but tha
tumne jiwan bhar diya
paakeezgi ka ye aalam dekho
ashqon mein tumne, charanaamrit bhar diya.

apni hansi tumhein thamakar
tum.mein dard bhi bhar diya
farishtaa ho ab bhi, tum mere
dekho! aaj tumhein insaan kar diya.

ab jaaoge kaise, kahin tum
tumhein apne dil mein samaa diya
hum kahte they, ki tum khuda ho
jaao, aaj tumhein insaan banaa diya.

- jenny shabnam (3. 9. 2009)
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मंगलवार, 1 सितंबर 2009

81. ख़ुदा बना दिया (तुकान्त)

ख़ुदा बना दिया

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मिज़ाज कौन पूछे, जब ख़ुद नासाज़ हो
ये सोच हमने, ख़ुद ही सब्र कर लिया 

इश्क़ का जुनून, कैसे कोई जाने भला
वो जो मोहब्बत से, महरूम रह गया 

दाख़िल ही नहीं कभी, बेदख़ल कैसे हों
फिर भी ये सुन-सुन, ज़माना गुज़र रहा

मायूसी से बहुत, थककर पुकारा उसे
बादलों में गुम वो, फिर निराश कर गया 

तरसते लोग जहाँ में, एक ख़ुदा के वास्ते
'शब' ने जाने कितनों को, ख़ुदा बना दिया 

- जेन्नी शबनम (31. 8. 2009)
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