हर लम्हा सबने उसे
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मुद्दतों की तमन्नाओं को, मरते देखा
मानों आसमाँ से तारा कोई, गिरते देखा।
मिलती नहीं राह मुकम्मल, जिधर जाएँ
बेअदबी का इल्ज़ाम, ख़ुद को लुटते देखा।
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मुद्दतों की तमन्नाओं को, मरते देखा
मानों आसमाँ से तारा कोई, गिरते देखा।
मिलती नहीं राह मुकम्मल, जिधर जाएँ
बेअदबी का इल्ज़ाम, ख़ुद को लुटते देखा।
हर इम्तहान से गुज़र गए, तो क्या हुआ
इबादत में झुका सिर, उसे भी कटते देखा।
इश्क़ की बाबत कहा, हर ख़ुदा के बन्दे ने
फिर क्यों हुए रुसवा, इश्क़ को मिटते देखा।
अपनों के खोने का दर्द, तन्हा दिल ही जाने है
रुख़सत हो गए जो, अक्सर याद में रोते देखा।
मान लिया सबने, वो नामुराद ही है फिर भी
रूह सँभाले, उसे मर-मर कर बस जीते देखा।
'शब' की दर्द-ए-दास्तान, न पूछो मेरे मीत
हर लम्हा सबने उसे, बस यूँ ही हँसते देखा।
- जेन्नी शबनम (4. 1. 2011)
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