तुम्हारे सवाल
*******
न तो सवाल बनी तुम्हारे लिए कभी
न ही कोई सवाल किया तुमसे कभी
फिर क्यों हर लम्हों का हिसाब माँगते हो?
फिर क्यों उगते हैं नए-नए सवाल तुममें?
कहाँ से लाऊँ उनके जवाब
जिसे मैंने सोचा ही नहीं
कैसे दूँ उन लम्हों का जवाब
जिन्हें मैंने जिया ही नहीं।
*******
न तो सवाल बनी तुम्हारे लिए कभी
न ही कोई सवाल किया तुमसे कभी
फिर क्यों हर लम्हों का हिसाब माँगते हो?
फिर क्यों उगते हैं नए-नए सवाल तुममें?
कहाँ से लाऊँ उनके जवाब
जिसे मैंने सोचा ही नहीं
कैसे दूँ उन लम्हों का जवाब
जिन्हें मैंने जिया ही नहीं।
मेरे माथे की शिकन की वज़ह पूछते हो
मेरे हर आँसुओं का सबब पूछते हो
अपने साँसों की रफ़्तार का जवाब कैसे दूँ?
अपने हर गुज़रते लम्हों का हिसाब कैसे दूँ?
तुम्हारे बेधते शब्दों से
आहत मन के आँसुओं का क्या जवाब दूँ?
तुम्हारी कुरेदती नज़रों से
छलनी वजूद का क्या जवाब दूँ?
बिन जवाबों के तुम मेरी औक़ात बताते हो
बिन जवाबों के तुम्हारे सारे इल्ज़ाम मैं अपनाती हूँ
फिर क्या बताऊँ कि कितना चुभता है
तुम्हारा ये अनुत्तरित प्रश्न
फिर क्या बताऊँ कि कितना टूटता है
तुम्हारे सवालिया आँखों से मेरा मन।
- जेन्नी शबनम (सितम्बर 10, 2008)
_________________________