मंगलवार, 10 जुलाई 2018

577. रंगरेज हमारा (चोका - 2)

रंगरेज हमारा   

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सुहानी संध्या   
डूबने को सूरज   
देखो नभ को 
नारंगी रंग फैला   
मानो सूरज   
एक बड़ा संतरा   
साँझ की वेला   
दीया-बाती जलाओ   
गोधूली-वेला 
देवता को जगाओ,   
ऋचा सुनाओ,   
अपनी संस्कृति को   
मत बिसराओ,   
शाम होते ही जब   
लौटते घर   
विचरते परिंदे   
गलियाँ सूनी   
जगमग रोशनी   
वो देखो चन्दा   
हौले-हौले मुस्काए   
साँझ ढले तो   
सूरज सोने जाए   
तारे चमके   
टिम-टिम झलके   
काली स्याही से   
गगन रंग देता   
बड़ा सयाना   
रंगरेज हमारा   
सबका प्यारा   
अनोखी ये दुनिया   
किसने रची!   
हर्षित हुआ मन   
घर-आँगन   
देख सुन्दर रूप   
चकित निहारते !   

- जेन्नी शबनम (13. 8. 2012)

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