मेरे शब्द
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बहुत कठिन है, पार जाना
ख़ुद से, और उन तथाकथित अपनों से
जिनके शब्द मेरे प्रति
सिर्फ़ इसलिए निकलते हैं कि
मैं आहत हो सकूँ,
खीझकर मैं भी शब्द उछालूँ
ताकि मेरे ख़िलाफ़
एक और मामला
जो अदालत में नहीं
रिश्तों के हिस्से में पहुँचे
और फिर शब्दों द्वारा
मेरे लिए, एक और मानसिक यंत्रणा।
नहीं चाहती हूँ
कि ऐसी कोई घड़ी आए
जब मैं भी बेअख़्तियार हो जाऊँ
और मेरे शब्द भी।
मेरी चुप्पी अब सीमा तोड़ रही है
जानती हूँ, अब शब्दों को रोक न सकूँगी
ज़ेहन से बाहर आने पर
मुमकिन है ये तरल होकर
आँखों से बहे या
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बहुत कठिन है, पार जाना
ख़ुद से, और उन तथाकथित अपनों से
जिनके शब्द मेरे प्रति
सिर्फ़ इसलिए निकलते हैं कि
मैं आहत हो सकूँ,
खीझकर मैं भी शब्द उछालूँ
ताकि मेरे ख़िलाफ़
एक और मामला
जो अदालत में नहीं
रिश्तों के हिस्से में पहुँचे
और फिर शब्दों द्वारा
मेरे लिए, एक और मानसिक यंत्रणा।
नहीं चाहती हूँ
कि ऐसी कोई घड़ी आए
जब मैं भी बेअख़्तियार हो जाऊँ
और मेरे शब्द भी।
मेरी चुप्पी अब सीमा तोड़ रही है
जानती हूँ, अब शब्दों को रोक न सकूँगी
ज़ेहन से बाहर आने पर
मुमकिन है ये तरल होकर
आँखों से बहे या
फिर शीशा बनकर
उन अपनों के बदन में घुस जाए
जो मेरी आत्मा को मारते रहते हैं।
मेरे शब्द
अब संवेदनाओं की भाषा
उन अपनों के बदन में घुस जाए
जो मेरी आत्मा को मारते रहते हैं।
मेरे शब्द
अब संवेदनाओं की भाषा
और दुनियादारी समझ चुके हैं।
- जेन्नी शबनम (22. 10. 2011)
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- जेन्नी शबनम (22. 10. 2011)
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