सोमवार, 16 जनवरी 2017

535. तुम भी न बस कमाल हो

तुम भी न बस कमाल हो  

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धत्त!
तुम भी न बस कमाल हो!  
न सोचते न विचारते  
सीधे-सीधे कह देते  
जो भी मन में आए  
चाहे प्रेम या गुस्सा  
और नाराज़ भी तो बिना बात ही होते हो  
जबकि जानते हो  
मनाना भी तुम्हें ही पड़ेगा  
और ये भी कि  
हमारी ज़िन्दगी का दायरा  
बस तुम तक  
और तुम्हारा बस मुझ तक  
फिर भी अटपटा लगता है  
जब सबके सामने  
तुम कुछ भी कह देते हो  
तुम भी न बस कमाल हो!  

- जेन्नी शबनम (16. 1. 2017)
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