गुरुवार, 21 नवंबर 2013

425. साँसों की लय (चोका - 5)

साँसों की लय  

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साँसें ज़िन्दगी 
निरंतर चलती 
ज़िंदा होने का   
मानों फ़र्ज़ निभाती, 
साँसों की लय 
है हिचकोले खाती    
बढ़ती जाती   
अपनी ही रफ़्तार  
थकती रही 
पर रुकती नही 
चलती रही 
कभी पूरजोरी से 
कभी हौले से 
कभी तूफ़ानी चाल 
हो के बेहाल 
कभी मध्यम चाल 
सकपका के   
कभी धुक-धुक सी  
डर-डर के 
मानो रस्म निभाती, 
साँसें अक्सर  
बेअदबी करती 
इश्क़ भूल के 
नफरत ख़ुद से 
नसों में रोष 
बेइन्तिहा भरती 
लगती कभी
मानो ग़ैर जिन्दगी, 
रहे तो रहे 
परवाह न कोई 
मिटे तो मिटे 
मगर साँसें घटें 
रस्म तो टूटे 
मानों होगी आज़ादी, 
कुम्हलाई है 
सपनों की ज़मीन 
उगते नही 
बारहमासी फूल 
जो दे सुगंध 
सजा जाए जीवन 
महके साँसें 
मानो बगिया मन, 
घायल साँसें 
भरती करवटें 
डर-डर के 
कँटीले बिछौने पे 
जिन्दगी जैसे 
लहूलुहान साँसें 
छटपटाती 
मानों ज़िन्दगी रोती 
आहें भरती 
रुदाली बन कर 
रोज़ मर्सिया गाती । 

- जेन्नी शबनम (21. 11. 2013)

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