पहली या अन्तिम बार
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याद करने के लिए कुछ ख़ास ज़रू
मसलन पहली या अन्तिम बार मिलना
किसी ख़ास वक़्त में किसी ख़ास जगह पर मिलना
चाय-कॉफ़ी पर चर्चा करना
प्यार की बातें करना, संसार की
सुख-दुःख बाँटना
बिना बात किए चुपचाप चलना
बेवजह मुस्कुराना, किसी बात पर
या और भी बहुत कुछ जो साझा किया
पहली या अन्तिम बार।
कोई भी बात
दूसरी बार के बाद विस्मृत हो जा
पहली और अन्तिम के बीच का वक़्त
न मुट्ठी में टिकता है न ज़े
सब कुछ सपाट व सरपट भाग जाता है
जाने ऐसा क्यों है?
निशान तो होता है समय के पास
पर दिखता कुछ नहीं
हाँ, ख़ुद को याद दिलाना होता है
पहली और अन्तिम के बीच
कुछ बहुत ख़ास जो गुज़रा होता है
जीवन के वे सभी पल जो बीत चुके
उस वक्त को मुठ्ठी में समेटना
और ज़ेहन में भरना ज़रूरी है
क्या मालूम
कालचक्र पहली और अन्तिम यादें मि
फिर कुछ तो रह जाएगा यादों में
जीवन के संध्या में मुस्कुराने
या अन्तिम क्षणों में सब जी ले
-जेन्नी शबनम (11.9.2023)
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