बारहमासी
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रग-रग में दौड़ा मौसम
रहा न मन अनाड़ी
मौसम का है खेल सब
हम ठहरे इसके खिलाड़ी।
आँखों में भदवा लगा
जब आया नाचते सावन
जीवन में उगा जेठ
जब सूखा मन का आँगन।
आया फगुआ झूम-झूमके
तब मन हो गया बैरागी
मुँह चिढ़ाते कार्तिक आया
पर जली न दीया-बाती।
समझो बातें ऋतुओं की
कहे पछेया बासन्ती
मन चाहे बेरंग हो, पर
रूप धरो रंग नारंगी।
पतझड़ हो या हरियाली
हँसी हो बारहमासी
मन में चाहे अमावस हो
जोगो सदा पूरनमासी।
-जेन्नी शबनम (9.9.2020)
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