बेपरवाह मौसम
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कुछ मौसम
बिना हाल पूछे, चुपके से गुज़र जाते हैं
भले ही मैं उसकी ज़रूरतमंद होऊँ
भले ही मैं आहत होऊँ,
कुछ मौसम
शूल से चुभ जाते हैं
- जेन्नी शबनम (8. 2. 2014)
और मन की देहरी पर
साँकल-से लटक जाते हैं
हवा के हर एक हल्के झोंके से
साँकल बज उठती है
जैसे याद दिलाती हो, कहीं कोई नहीं,
दूर तक फैले बियाबान में
जैसे बिन मौसम बरसात शुरू हो
कुछ वैसे ही
मौसम की चेतावनी
मन की घबराहट और कुछ पीर
आँखों से बह जाती हैं
कुछ ज़ख़्म और गहरे हो जाते हैं,
फिर सन्नाटा
जैसे हवाओं ने सदा के लिए
अपना रुख़ मोड़ लिया हो
और जिसे इधर देखना भी
अब गँवारा नहीं।
- जेन्नी शबनम (8. 2. 2014)
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