चलो चलते हैं
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सुनो साथी!
चलो चलते हैं
नदी के किनारे ठंडी रेत पर
पाँव को ज़रा ताज़गी दे वहीं ज़रा सुस्ताएँगे
अपने-अपने हिस्से का अबोला दर्द
रेत से बाँटेंगे
न तुम कुछ कहना
न हम कुछ पूछेंगे
अपने-अपने मन की गिरह ज़रा-सी खोलेंगे
मन की गाथा
जो हम रचते हैं काग़ज़ के सीने पर
सारी की सारी पोथियाँ वहीं बहा आएँगे
अँजुरी में जल ले संकल्प दोहराएँगे
और अपने-अपने रास्ते पर बढ़ जाएँगे
सुनो साथी!
चलते हैं नदी के किनारे
ठंडी रेत पर वहीं ज़रा सुस्ताएँगे।
- जेन्नी शबनम (4. 8. 2016)
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