आज़माया हमको
***
बेख़याली ने कहाँ-कहाँ न भटकाया हमको
होश आया तो तन्हाई ने तड़पाया हमको।
इस बाज़ार की रंगीनियाँ लुभाती नहीं हैं अब
नन्ही आँखों की उदासी ने रुलाया हमको।
उन अनजान-सी राहों पर यूँ चल तो पड़े हम
असूफ़ों और फ़रिश्तों ने आज़माया हमको।
वज़ह-ए-निख़्वत उनकी दूर जो गए हम
मिले कभी फिर तो गले भी लगाया हमको।
रुसवाइयों से उनकी तरसते ही रहे हम
इश्क़ की हर शय ने बड़ा सताया हमको।
दर्द दुनिया का देखके घबराई बहुत 'शब'
ऐ ख़ुदा ऐसा ज़माना क्यों दिखाया हमको।
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असूफ़- दुष्ट
वजह-ए-निख़्वत- अंहकार के कारण
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-जेन्नी शबनम (4. 7. 2009)
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बेख़याली ने कहाँ-कहाँ न भटकाया हमको
होश आया तो तन्हाई ने तड़पाया हमको।
इस बाज़ार की रंगीनियाँ लुभाती नहीं हैं अब
नन्ही आँखों की उदासी ने रुलाया हमको।
उन अनजान-सी राहों पर यूँ चल तो पड़े हम
असूफ़ों और फ़रिश्तों ने आज़माया हमको।
वज़ह-ए-निख़्वत उनकी दूर जो गए हम
मिले कभी फिर तो गले भी लगाया हमको।
रुसवाइयों से उनकी तरसते ही रहे हम
इश्क़ की हर शय ने बड़ा सताया हमको।
दर्द दुनिया का देखके घबराई बहुत 'शब'
ऐ ख़ुदा ऐसा ज़माना क्यों दिखाया हमको।
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असूफ़- दुष्ट
वजह-ए-निख़्वत- अंहकार के कारण
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-जेन्नी शबनम (4. 7. 2009)
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