ज़िन्दगी नहीं है
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बहुत कुछ था जो अब नहीं है
कुछ है पर ज़िन्दगी नहीं है।
कश्मकश में उलझकर क्या कहें
जो कुछ भी था अब नहीं है।
हयात-ए-सफ़र पर चर्चा क्या
कहने को बचा अब कुछ नहीं है।
फ़िसलते नातों का ये दौर
ख़तम होता अब क्यों नहीं है।
रह-रहकर पुकारता है मन
सब है पर अपना कोई नहीं है।
'शब' की बातें कच्ची-पक्की
ज़िन्दा है पर ज़िन्दगी नहीं है।
- जेन्नी शबनम (11. 11. 22)
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