तपता ये जीवन
(10 ताँका)
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1.
अँजुरी भर
सुख की छाँव मिली
वह भी छूटी
बच गया है अब
तपता ये जीवन।
2.
किसे पुकारूँ
सुनसान जीवन
फैला सन्नाटा,
आवाज घुट गई
मन की मौत हुई।
3.
घरौंदा बसा
एक-एक तिनका
मुश्किल जुड़ा,
हर रिश्ता विफल
ये मन असफल।
4.
क्यों नहीं बनी
किस्मत की लकीरें
मन है रोता,
पग-पग पे काँटे
आजीवन चुभते।
5.
सावन आया
पतझर-सा मन
नहीं हर्षाया,
काश! जीवन होता
गुलमोहर-गाछ।
6.
नहीं विवाद
मालूम है, जीवन
क्षणभंगूर
कैसे न दिखे स्वप्न
मन नहीं विपन्न।
7.
हवा के संग
उड़ता ही रहता
मन-तितली
मुर्झाए सभी फूल
कहीं मिला न ठौर।
8.
तड़प रहा
प्रेम की चाहत में
मीन-सा मन,
प्रेम लुप्त हुआ, ज्यों
अमावस का चाँद।
9.
जो न मिलता
सिरफिरा ये मन
वही चाहता
हाथ पैर मारता
अंतत: हार जाता।
10.
स्वप्न-संसार
मन पहरेदार
टोकता रहा,
जीवन से खेलता
दिमाग अलबेला।
दिमाग अलबेला।
- जेन्नी शबनम (25. 5. 2018)
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