सूरज नासपिटा
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सूरज पीला
पूरब से निकला
पूरे रौब से
गगन पे जा बैठा,
गोल घूमता
सूरज नासपिटा
आग बबूला
क्रोधित हो घूरता,
लावा उगला
पेड़-पौधा जलाए
पशु-इंसान
सब छटपटाए
हवा दहकी
धरती भी सुलगी
नदी बहकी
कारे बदरा ने ज्यों
ली अँगड़ाई
सावन घटा छाई
सूरज चौंका
''मुझसे बड़ा कौन?
मुझे जो ढँका'',
फिर बदरा हँसा
हँस के बोला -
''सुनो, सावन आया
मैं नहीं बड़ा
प्रकृति का नियम
तुम जलोगे
जो आग उगलोगे
तुम्हें बुझाने
मुझे आना ही होगा'',
सूरज शांत
मेघ से हुआ गीला
लाल सूरज
धीमे-धीमे सरका
पश्चिम चला
धरती में समाया
गहरी नींद सोया !
- जेन्नी शबनम (20. 5. 2016)
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