आईना और परछाई
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आईना मेरा सखा
जो मुझसे कभी झूठ नहीं बोलता
परछाई मेरी सखी
जो मेरा साथ कभी नहीं छोड़ती
इन दोनों के साथ मैं
जीवन के धूप-छाँव का खेल खेलती
आईना मेरे आँसू पोंछता
बिना थके मुझे सदा हँसाता
परछाई मेरे संग-संग घूमती
अँधियारे से मैं जब-जब डरती
मेरा हाथ पकड़ वो रोशनी में भागती
हाँ! यह अलग बात
आजकल आईना मुझसे रूठा है
मैं उससे मिलने नहीं जाती
उसका सच मैं देखना नहीं चाहती
आजकल मेरी परछाई मुझसे लड़ती है
मैं अँधेरों से बाहर नहीं निकलती
जाने क्यों रोशनी मुझे नहीं सुहाती।
जानती हूँ, ये दोनों साथी
मेरे हर वक़्त के राज़दार हैं
मेरा आईना मेरा मन
मेरी परछाई मेरी साँसें
ये कभी न छोड़ेंगे मेरा दामन।
- जेन्नी शबनम (9. 6. 2020)
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