कशमकश
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रिश्तों की कशमकश में ज़ेहन उलझा है
उम्र और रिश्तों के इतने बरस बीते
मगर आधा भी नहीं समझा है
फ़क़त एक नाते के वास्ते
कितने-कितने फ़रेब सहे
बिना शिकायत बिना कुछ कहे
घुट-घुटकर जीने से बेहतर है
तोड़ दें नाम के वे सभी नाते
जो मुझे बिल्कुल समझ नहीं आते।
मगर आधा भी नहीं समझा है
फ़क़त एक नाते के वास्ते
कितने-कितने फ़रेब सहे
बिना शिकायत बिना कुछ कहे
घुट-घुटकर जीने से बेहतर है
तोड़ दें नाम के वे सभी नाते
जो मुझे बिल्कुल समझ नहीं आते।
- जेन्नी शबनम (12.6.2021)
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