आत्मा होती अमर (10 सेदोका)
*******
1.
छिड़ी है जंग
सच झूठ के बीच
किसकी होगी जीत ?
झूठ हारता
भले देर-सबेर
होता सच विजयी !
2.
दिल बेजार
रो-रो कर पूछता
क्यों बनी ये दुनिया ?
ऐसी दुनिया -
जहाँ नहीं अपना
रोज़ तोड़े सपना !
3.
कुंठित सोच
भयानक है रोग
सर्वनाश की जड़,
खोखले होते
मष्तिष्क के पुर्जे
बदलाव कठिन !
4.
नश्वर नहीं
फिर भी है मरती
टूट के बिखरती,
हमारी आत्मा
कहते धर्म-ज्ञानी -
आत्मा होती अमर !
5.
अपनी पीड़ा
सदैव लगी छोटी,
गैरों की पीड़ा बड़ी,
खुद को भूल
जी चाहता हर लूँ
सारे जग की पीड़ा !
6.
फड़फड़ाते
पर कटे पक्षी-से
ख्वाहिशों के सम्बन्ध,
उड़ना चाहे
पर उड़ न पाएँ
नियत अनुबंध !
7.
नहीं विकल्प
मंज़िल की डगर
मगर लें संकल्प
बहुत दूर
विपरीत सफर
न डिगेंगे कदम !
8.
एक पहेली
बूझ-बूझ के हारी
मगर अनजानी,
ये जिंदगानी
निरंतर चलती
जैसे बहती नदी !
9.
संभावनाएँ
सफलता की सीढ़ी
कई राह खोलतीं,
जीवित हों तो,
मरने मत देना
संभावना जीवन !
10.
पुनरुद्धार
अपनी सोच का हो
अपनी आत्मा का हो
तभी तो होगा
जीवन गतिमान
मंज़िल भी आसान !
- जेन्नी शबनम (अगस्त 7, 2012)
____________________________