रविवार, 22 मार्च 2009

40. बुत और काया (पुस्तक - लम्हों का सफ़र - 101)

बुत और काया

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ख़यालों के बुत ने
अरमान के होंठों को चूम लिया,
काले लिबास-सी वो रात
तमन्नाओं की रौशनी में नहा गई 

बुत की रूह और काया
पल भर को साथ मिले,
आँखों में शरारत हुई
हाथों से हाथ मिले,
प्रेम की अगन जली
क़यामत-सी बात हुई,
फिर मिलने के वादे हुए
याद रखने के इरादे हुए 

बिछुड़ने का वक़्त जब आया
दोनों के हाथ दुआ को उठे,
चेहरे पे उदासी छाई
आँखों में नमी पिघली,
दर्द मुस्कान बन उभरा
चुप-सी रात ज़रा-सी ठिठकी,
एक दूसरे के सीने में छुप
वे आँसू छुपाए ग़म भुलाए 

फिर बुत के अरमान
उसकी अपनी रूह
बुत की काया में समा गई,
फिर कभी न मिलने के लिए 

- जेन्नी शबनम (21. 3. 2009)
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39. अवैध सम्बन्ध

अवैध सम्बन्ध

(वर्षों पूर्व लिखी यह रचना, साझा कर रही हूँ। कानून और समाज में वैधता-अवैधता की परिभाषा चाहे जो हो, मेरी नज़र में हम सभी ख़ुद में एक अवैध रिश्ता जीते हैं; क्योंकि मन के ख़िलाफ़ जीना सबसे बड़ी अवैधता है और हम किसी-न-किसी रूप में ऐसे जीने को विवश हैं।) 

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मेरी आत्मा और मेरा वजूद दो स्वतन्त्र अस्तित्व है
और शायद दोनों में अवैध सम्बन्ध है
नहीं! शायद मेरा ही मुझसे अवैध सम्बन्ध है

मेरी आत्मा मेरे वजूद को सहन नहीं कर पाती है 
और मेरा वजूद सदैव
मेरी आत्मा का तिरस्कार करता है

दो विपरीत अस्तित्व एक साथ मुझमें बस गए
आत्मा और वजूद के झगड़े में उलझ गए
एक साथ दोनों जीवन मैं जी रही
आत्मा और वजूद को एक साथ ढो रही

मेरा मैं न तो पूर्णतः आत्मा को प्राप्त है
न ही वजूद का एकाधिकार है
और बस यही मेरा मुझसे अवैध सम्बन्ध है

एक द्वंद्व, एक समझौता, जीवन जीने का अथक प्रयास
कानून और समाज की नज़र में यही तो वैध सम्बन्ध है

दो वैध रिश्तों का ये कैसा अवैध सम्बन्ध है?
स्वयं मेरी नज़र में मेरा मुझसे अवैध सम्बन्ध है

- जेन्नी शबनम (नवम्बर, 1992)
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