सोमवार, 31 मई 2021

722. सिगरेट (5 कविता)

सिगरेट 

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1. 
अदना-सी सिगरेट (नवधा-197)
*** 
क्यों कहते हो कि उसे छोड़ दूँ 
अदना-सी, वह क्या बिगाड़ती है तुम्हारा?
मैंने समय इसके साथ ही गुज़ारा 
इसने ख़ुद को जलाए, दिया मुझको सहारा। 
   
इसके साथ मेरा वक़्त बेफ़िक्र रहता है   
और जीवन बेपरवाह चलता है   
तनहाइयों में एक वही तो है, जो साथ रहती है   
मनोदशा को बेहतर समझती है   
और मिज़ाजपुर्सी करती है   
ख़ुद को जलाकर बादलों-सा सफ़ेद धुआँ बनकर   
उसमें मेरी मनचाही आकृतियाँ गढ़ती है।
   
हाँ! मालूम है मुझे   
उसके साथ मेरी साँसे घट रही हैं   
मेरे फेफड़ों पर कालिख जम रही है   
पर वह तलब है मेरी, ज़रूरत है मेरी   
रगों में वह जीवन-वायु बन घुल चुकी है   
सिगरेट मेरी बेचैनी समझती है   
मेरी राज़दार, मेरे अकेलेपन की साथी   
मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ती है।
   
उसके बिना साँसें बचें भी तो क्या   
यों भी मौत तो एक दिन आनी है   
इसके साथ ही आए   
ज़िन्दगी और मौत इसके साथ ही सुहाती है   
दिल इसे छोड़कर किधर जाए।   

2. 
सिगरेट : इन्सान 
*** 
धीरे-धीरे फूँक-फूँककर   
सिगरेट को इन्सान राख बनाता है   
सिगरेट धीरे-धीरे अपनी गिरफ़्त में लेकर   
इन्सान को राख के ढेर तक पहुँचाती है   
अन्तिम सत्य- दोनों का राख में तब्दील होना   
तय वक़्त पर दोनों ख़ाक होते हैं   
एक दूसरे के ये अद्भुत यार   
एक दूजे को जलाकर ख़ाक में मिलते हैं   
जबतक जीते हैं दोनों यारी निभाते हैं।   

3. 
आख़िरी सिगरेट 
*** 
सिगरेट के राख बनने तक   
घड़ी की सूई बेलगाम भागती है   
शायद याद दिलाती है मुझे   
ज़ल्दी ही एक दिन राख बनना है   
सिगरेट थामे मेरी उँगलियाँ अक्सर काँप जाती है   
क्या पता इस उम्र की यह आख़िरी सिगरेट हो   
क्या पता यह अन्तिम कश हो   
या मेरी उम्मीद की अन्तिम साँसें   
जिसे सिगरेट के हवाले किया है।   

4. 
सिगरेट की यारी 
*** 
सब कहते- 
सिगरेट यार नहीं दुश्मन है   
जान लेकर कैसी यारी निभाती है?   
छोड़ दो न ऐसी यारी!   
पर जीने का सहारा कोई तो बताए   
सिगरेट से ज़्यादा कोई तो साथ निभाए   
एक वही तो है   
जो मेरे दर्द को समेटकर   
मेरे मन की आग से ख़ुद को जलाती है   
भले मेरा फेफड़ा जलता है   
पर मेरी ज़िन्दगी   
वाह! नशा ही नशा है   
इससे अच्छी कोई और है क्या?   

5. 
सिगरेट को श्रधांजलि 
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चलो कहते हो तो छोड़ देते हैं   
उसे जीवन से दूर कर देते हैं   
पर वादा करो, सच्चा वाला वादा   
मेरे रिसते ज़ख़्मों पर मरहम लगाओगे   
मेरे हर दर्द पर तंज तो न कसोगे   
मेरी नाकामियों में साथ तो न छोड़ोगे?   
जब-जब हार मिले मेरा सम्बल बनोगे?   
हर हालात में मेरा साथ निभाओगे?   
नाराज़ हो जाऊँ, तब भी तुम प्यार करना न छोड़ोगे?   
हाँ! पक्का वादा, सच्चा वादा, प्यार का वादा!   
वाह! अब वादा कर लिया तुमने   
मालूम है, तुम कसमें निभाओगे   
अब मेरी बारी है वादा करने की   
सच्चा वाला, अच्छा वाला, प्यारा वाला वादा   
आज से सिगरेट को तिलांजलि   
आओ, दे दें उसे श्रद्धांजलि   
अब तुम में ही सिगरेट   
तुम्हें अर्पित पुष्पांजलि।   

-जेन्नी शबनम (31.5.2021)
(विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर)
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मंगलवार, 25 मई 2021

721. इश्क़ (10 क्षणिका)

श्क़ 

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1.
इश्क़ एक सपना 
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इश्क़ एक सपना   
टूटकर जुड़ता   
बेचैन करवटों में   
हर बार नया फिर से पलता   
मगर रह जाता   
सपना-सा सदा अधूरा। 
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2. 
इश्क़ एक तलवार
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इश्क़ एक तलवार   
गर म्यान से बाहर   
एक झटका   
धड़ बदन से ग़ायब   
इश्क़-तलवार   
मन-म्यान के अन्दर। 
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3. 
इश्क़ जैसे आँधी 
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इश्क़ जैसे एक आँधी   
तूफ़ान की तरह आततायी   
सब मटियामेट   
ज़िन्दगी भी और दुनिया भी। 
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4. 
इश्क़ जैसे सूरज
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इश्क़ जैसे सूरज   
जीवन देता और ताप भी   
जिसके माप का पैमाना है 
मगर पकड़ से बाहर   
वो है तो जीवन है   
वो नहीं तो दुनिया नहीं। 
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5. 
इश्क़ की दुनिया 
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इश्क़ की दुनिया गज़ब की   
मिलना-बिछड़ना पर साथ-साथ होना   
न  कोई वायदा न कोई इसरार   
मन में बसा है प्यार   
भले छूट जाए संसार। 
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6. 
फ़िज़ा में इश्क़ 
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जाने ज़िन्दगी किसके जैसी   
न तेरे जैसी न मेरे जैसी   
थोड़ी खट्टी थोड़ी मीठी   
खट्टी-मीठी इमली जैसी   
सोंधी-सोंधी-सी तेरी खुशबू   
फ़िज़ा में इश्क़ ज़िन्दगी ऐसी। 
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7. 
इश्क़ इबादत 
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दस्तूर-ए-मोहब्बत मालूम नहीं   
इश्क़ ही बस एक इबादत   
इतना ही मालूम है। 
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8. 
इश्क़ का एक लम्हा 
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अल्लाह! एक दुआ क़ुबूल करो   
क़यामत से पहले इतनी मोहलत दे देना   
दम टूटे उससे पहले   
इश्क़ का एक लम्हा दे देना। 
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9. 
इश्क़ पर क़ुर्बान 
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इश्क़ के आयत की पर्ची   
यादों की ताबीज़ में बंदकर   
सिरहाने के दराज़ में छुपा दी   
अलामतें कोई न देखे,   
यादों की पूरनमासी यादों की अमावस   
यादों का चक्रव्यूह जीवन थक चला है  
अब यादों की ताबीज़ टूट ही जाए   
ज़िन्दगी इश्क़ पर कुर्बान हो जाए। 
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10.
इश्क़ की लकीर 
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ज़िन्दगी के माथे पर नसीब का टीका   
ज़िन्दगी की हथेली पर इश्क़ की लकीर   
फिर उम्र को परवाह क्या   
पल भर मिले या सदियाँ रहे 

- जेन्नी शबनम (25. 5. 2021) 
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मंगलवार, 18 मई 2021

720. अब डर नहीं लगता

अब डर नहीं लगता 

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अब डर नहीं लगता!   
न हारने को कुछ शेष   
न किसी जीत की चाह   
फिर किस बात से डरना?   
सब याद है   
किस-किस ने प्यार किया   
किस-किस ने दुत्कारा   
किस-किस ने छला   
किस-किस ने तोड़ा   
किस-किस को पुकारा   
किस-किस ने मुँह फेरा   
सब के सब   
अब कहानी-से हैं   
अतीत के सभी छाले   
दर्द नहीं देते   
अब सुकून देते हैं   
भीड़ में गुम होने की ख़ुशी देते हैं   
मुक्त होने का एहसास देते हैं   
बेफ़िक्र जीने का सन्देश देते हैं   
फिर किस बात से डरना?   
न खोने को कुछ शेष   
न कुछ पाने की चाह   
अब डर नहीं लगता!   

- जेन्नी शबनम (18. 5. 2021) 
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शनिवार, 1 मई 2021

719. कोरोना (5 कविता)

कोरोना 

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1. 
ओ कोरोना (कोरोना- नवधा-198) 
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ओ कोरोना!   
है कैसा व्यापारी तू   
लाशों का करता व्यापार तू   
और कितना रुलाएगा   
कब तक यूंँ तड़पाएगा   
हिम्मत हार गया संसार   
नतमस्तक सारा संसार   
लाशों से ख़ज़ाना तूने भर लिया   
हर मौत का इल्ज़ाम तूने ले लिया   
पर यम भी अब घबरा रहा   
बार-बार समझा रहा   
तेरे ख़ज़ाने के लिए बचा न स्थान   
मरघट बन गया स्वर्ग का धाम   
ओ कोरोना!   
ढूँढ कोई दूजा संसार।   

2. 
ओ विषाणु 
***
ओ विषाणु!   
सुन, तुझे रक्त चाहिए   
आ, आकर मुझे ले चल!   
मैं रावण-सी बन जाती हूँ   
हर एक साँस मिटने पर   
ढेरों बदन बन उग जाऊँगी   
तू अपनी क्षुधा मिटाते रहना   
पर विनती है   
जीवन वापस दे उन्हें   
जिन्हें तू ले गया छीनकर   
मैं तैयार हूँ   
आ मुझे ले चल!   

3. 
ओ नरभक्षी 
***
ओ नरभक्षी!   
हर मन श्मशान बनता जा रहा है   
पर तू शान से भोग करता जा रहा है   
कैसे न काँपते हैं तेरे हाथ   
जब एक-एक साँस के लिए   
तुझसे मिन्नत करते हैं करोड़ों हाथ   
और तेरा खूनी पंजा   
लोगों को तड़पाकर   
नोचते-खसोटते हुए   
अपने मुँह का ग्रास बनाता है   
अब बहुत भोग लगाया तूने   
जा, सदा के लिए अब जा   
अन्तरिक्ष में विलीन हो जा!   

4. 
ओ रक्त पिपासु 
***
ओ रक्त पिपासु!   
तेरे खूनी पंजे ने   
हर मन, हर घर पर   
चिपकाए हैं इश्तेहार-   
''तुझे जो भाएगा, तू ले जाएगा   
दीप, शंख, हवन, गो कोरोना गो से   
तू नहीं डरता   
सब तरफ़ लाल रक्त बहाएगा''   
रोते, चीखते, काँपते, छटपटाते लोग   
तुझे बहुत भाते हैं   
पर अब तो रहम कर   
जब कोई न होगा   
तू किसका भोग लगाएगा।   

5. 
ओ पिशाच 
***
ओ पिशाच!   
अब दया कर   
चला जा तू अपने घर   
हम सब हार गए   
तेरी शक्ति मान गए   
ज़ख़्म दिए तूने गहरे सबको   
भला कौन बचा, तू खोजे जिसको   
घर-घर में मातम पसरा   
कौन ताके किसका असरा   
जा, तू चला जा   
अब कभी न आना   
बची-खुची, आधी-अधूरी दुनिया से   
हम काम चला लेंगे   
जिनको खोया उनकी यादों में   
जीवन बिता लेंगे।   

-जेन्नी शबनम (30.4.2021) 
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