सोमवार, 2 मई 2011

239. ज़िन्दगी ऐसी ही होती है

ज़िन्दगी ऐसी ही होती है

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सुनसान राहों से गुज़रते हुए
ज़िन्दगी ख़ामोश हो गई है
कविता भी अब मौन हो गई है। 

शब्द तो बहुत उपजते हैं
और यों ही विलीन हो जाते हैं
बिना कहे शब्द भी खो जाते हैं। 

मेरे शब्द चुप हो रहे हैं
और एक चुप्पी मुझमें भी उग रही है
कविता जन्म लेने से पहले ही मर रही है। 

किसे ढूँढकर कहें कि साथ चलो
मेरी अनकही सुन लो
न सुनो, मेरे लिए कुछ तो कह दो। 

सफ़र की वीरानगी जब दिल में उतर जाती है
मानो कि बहुत चले, मगर ज़िन्दगी वहीं ठहरी होती है
अब जाना कि ज़िन्दगी ऐसी ही होती है  

- जेन्नी शबनम (2.5.2011)
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